मध्य प्रदेश की बिजली कहां गई, सरल हिंदी में समझिए - MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल
। ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर भले ही सीना तान कर कह रहे हों कि बिजली की कोई समस्या नहीं है, लेकिन उनके बयान से बिजली नहीं आती, उसके लिए उत्पादन करना होता है। बहुत सारे तकनीकी शब्दों के बजाय सरल हिंदी में सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि सरकार का खजाना खाली है। कोयले का पिछला बकाया भुगतान नहीं किया। नया कोयला खरीदने के लिए पैसा नहीं है। बिजली का उत्पादन कम होता जा रहा है। केवल यही कारण है कि जिस मध्यप्रदेश में मांग से ज्यादा बिजली का उत्पादन हो रहा था, वहां मांग की आपूर्ति भी नहीं की जा रही है।

हमने तो बिजली बिल टाइम पर भर दिया था, फिर पेमेंट क्यों नहीं किया 

मध्य प्रदेश के लोगों की सहनशक्ति काफी अच्छी है। अपन जानते हैं कि बिजली कंपनी लापरवाही, भ्रष्टाचार और बिजली चोरों के कारण हुए नुकसान की भरपाई भी ईमानदार उपभोक्ताओं से करती है। जो लोग नियमित रूप से बिजली बिल भरते हैं, उनकी बिजली इसलिए महंगी होती है क्योंकि बिजली कंपनी के कुछ अधिकारी लापरवाह है, कुछ भ्रष्ट और कुछ बिजली उपभोक्ता चोरी कर रहे हैं। इसके बावजूद सवाल ये उठता है कि जब उपभोक्ताओं ने समय पर बिजली बिल भर दिया है तो फिर कोयले का पेमेंट क्यों नहीं किया गया। यह पैसा कौन खा गया। 

वोट बैंक की राजनीति ने खजाना खाली करवा दिया 

दरअसल, वोट बैंक की राजनीति ने मध्य प्रदेश के सरकारी खजाना खाली करवा दिया है। वोट के लालच में सरकार फ्री में बिजली बांट रही है। नाम मात्र का बिल बनाया जा रहा है। सरकार ने घोषणा कर दी कि गरीब जो बिजली जलाएंगे उसका पैसा सरकार अदा करेगी, परंतु सरकार तो कुछ कमाती ही नहीं है। वह कहां से अदा करेगी। 200000 करोड रुपए का कर्जा ले रखा है। सरकार के पास आय का कोई साधन नहीं है। ईमानदार जनता पर पहले से ही बेतहाशा टैक्स लगाए जा चुके हैं। यह कारण है कि जिन लोगों ने बिजली समय पर अदा किया है उन्हें भी बिजली नहीं मिल रही है। 

एक गड़बड़ी यह भी है

मध्यप्रदेश में केवल 10000 मेगा वाट बिजली की डिमांड है। और सरकार ने प्राइवेट कंपनियों से 21000 मेगा वाट का एग्रीमेंट कर रखा है। सरकार बिजली खरीदे या ना खरीदें 4200 करोड रुपए प्राइवेट कंपनियों को देने पड़ते हैं। क्योंकि एग्रीमेंट में सरकार ने यह शर्त स्वीकार की है। आप इसे जो चाहे नाम दे सकते हैं परंतु वास्तविकता यह है कि प्राइवेट कंपनियां एग्रीमेंट करने के बाद भी बिजली नहीं दे रहीं, जबकि पैसा ले रही है।

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