वैसे तो किसी भी व्यक्ति से बंधुआ मजदूरी या उसकी मर्जी के बिना जबरदस्ती काम करवाना भारतीय संविधान, 1950 का अनुच्छेद 23 का उल्लंघन होता है और भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 374 भी यही कहती है कि किसी भी व्यक्ति से उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती मजदूरी करवाना एक गंभीर अपराध होता है। इसके लिए अधिकतम एक वर्ष का कारावास हो सकता है।
अगर हम बात करे श्रम विधि की तो बंधक श्रम पद्धति (उत्पादन) अधिनियम, 1976 भी बंधुआ मजदूरी पर रोक लगता है लेकिन अगर कोई व्यक्ति किसी विशेष वर्ग के व्यक्ति अर्थात SC-ST के सदस्यों से खेत में जबरदस्ती मजदूरी करवाता है या किसी व्यक्ति को कर्ज देकर या पूर्वजों का कर्ज बताकर आज भी बंधुआ मजदूरी करवाता है, वह व्यक्ति जो उपर्युक्त वर्ग का सदस्य नहीं है उस पर विशेष विधि की किस धारा के अंतर्गत मामला दर्ज होगा जानिए।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1), (ज) की परिभाषा:-
कोई व्यक्ति जी अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य नहीं है वह ऐसे विशेष वर्ग के सदस्यों से किसी भी प्रकार की बधुआ मजदूरी करवाएगा या कर्ज अधिरोपित करके बंधक बनाकर रखेगा या किसी लोकसेवक को दिए गए सरकार द्वारा कोई काम से भिन्न अन्य कार्य करने के लिए विवश करेगा या जबरदस्ती धमका कर विधि विरुद्ध कोई श्रम करवाएगा। तब वह व्यक्ति अधिनियम की धारा 3(1) (ज) के अंतर्गत दंडनीय होगा।
सजा का प्रावधान:-
धारा 3(1) (ज) के अपराध का विचारण विशेष न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होंगे। इस धारा के अपराध के लिए अधिकतम पाँच वर्ष की सजा एवं जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है।
पीड़ित व्यक्ति को राहत राशि
अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम, 1995 नियम 12 (4) के अनुसार इस अपराध के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति को राज्य शासन द्वारा एक लाख की आर्थिक सहायता दी जाती है। यह राशि जिला कलेक्टर या SDM या जिला संयोजक अनुसूचित जाति एवं जनजाति कार्यालय द्वारा स्वीकृत होती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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