Who is the owner of temple property: Important decision of Supreme Court
नई दिल्ली। मध्यप्रदेश शासन एवं पुजारियों के बीच एक विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। यह फैसला भारत के सभी मंदिरों की संपत्ति से संबंधित विवादों के निपटारे में रिफरेंस का काम करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मंदिर की संपत्ति का स्वामी भगवान होते हैं, पुजारी नहीं। इस फैसले के बाद ना केवल मध्य प्रदेश बल्कि देशभर के तमाम मंदिरों की संपत्ति से संबंधित विवादों का निपटारा हो जाएगा।
मंदिर की संपत्ति के दुरुपयोग को रोकने परिपत्र जारी किया था
मध्यप्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता- 1959 के तहत जारी परिपत्रों को पहले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। इन परिपत्रों में लिखा था कि राजस्व रिकॉर्ड में मंदिर की संपत्ति से पुजारी का नाम हटा दिया जाए। शासन की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गई। अपील में राज्य ने तर्क दिया कि मंदिर की संपत्तियों को पुजारियों द्वारा अवैध बिक्री से बचाने के लिए इस तरह के कार्यकारी निर्देश जारी किए गए थे। दूसरी ओर, पुजारियों ने तर्क दिया कि उन्हें भूमिस्वामी (स्वामित्व) अधिकार प्रदान किए गए हैं और इसे कार्यकारी निर्देशों के द्वारा वापस नहीं लिया जा सकता है।
मंदिर की संपत्ति का स्वामी केवल देवता, इसमें कोई विवाद नहीं: सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना की पीठ ने अयोध्या में राममंदिर पर फैसले सहित पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा, ‘कानून इस भेद पर स्पष्ट है कि पुजारी मौरूसी काश्तकार नहीं है। यानी, वह खेती में किराएदार या सरकारी पट्टेदार या माफी भूमि का सामान्य किराएदार नहीं है। बल्कि प्रबंधन के उद्देश्य से औकाफ विभाग की ओर से नियुक्त किया गया है। पुजारी केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए एक अनुदानकर्ता है। यदि पुजारी उसे सौंपे गए कार्य यानी पूजा करने और भूमि का प्रबंधन आदि को करने में विफल रहता है तो इस तरह के अनुदानकर्ता को बदला जा सकता है।