शासन द्वारा संचालित संस्थाओं में कुछ विशेष पद ऐसे होते हैं जो महिलाओं के लिए 100% आरक्षित होते हैं। जैसे किसी कन्या विद्यालय या गर्ल्स कॉलेज के प्रिंसिपल का पद। महिला पुलिस थाने के प्रभारी का पद। कन्या छात्रावास के अधीक्षक का पद। इत्यादि। भारत के संविधान 1950 के अनुच्छेद 14- समानता के अधिकार या अनुच्छेद 16- लोक सेवाओं में अवसर की समानता के अधिकार प्रदान किया गया है। क्या किसी विशेष पद को महिलाओं के लिए आरक्षित कर देना अवसर की समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। आइए अध्ययन करते हैं:-
भारतीय संविधान,1950 के अनुच्छेद 15 (3) की परिभाषा:-
भारत के संविधान का अनुच्छेद 15 राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए विशेष नियम बनाने से नहीं रोकेगी। क्योंकि स्त्रियों ओर बालकों की स्वाभविक प्रकृति ही ऐसी होती हैं जिसके कारण उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता होती है। भारत में स्त्रियों की दशा पहले से ही बहुत शोचनीय थी, वे अपनी सामाजिक कुरीतियों जैसे- बाल विवाह, बहु विवाह, सतीप्रथा, पर्दाप्रथा आदि की शिकार थी और वे पूर्णरूप से पुरूषों पर आश्रित थी, इसी कारण राज्य शासन उनके लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के अंतर्गत विशेष कानून बनाने का अधिकार रखता हैं।
महिला आरक्षण पर उधारानुसार निर्णायक वाद:- विजय लक्ष्मी बनाम पंजाब विश्विद्यालय-
उक्त मामले में विश्वविद्यालय कैलेण्डर के एक नियम के अंतर्गत महिला विद्यालयों में प्रिंसिपल के पद पर केवल महिलाओं की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यह नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 16 का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि इसके अधीन किया गया वर्गीकरण सही है और इसका उस उद्देश्य से संबंध है जिसे पूरा किया जाना अर्थात महिलाओं की सुरक्षा हैं।
इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 15 (3) के अधीन राज्य सरकार को स्त्रियों के लिए विशेष नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है एवं कोई भी न्यायालय अनुच्छेद 15(3) के अधीन राज्य द्वारा महिलाओं के हित में बनाये गए नियमो या निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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