हिंदू विवाह अधिनियम 1955 हर उस लड़की के कानूनी अधिकारों की रक्षा करता है जिसने विधिवत विवाह किया हो। कानून लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली लड़कियों के भी अधिकारों की रक्षा करता है परंतु तीन प्रकार के विवाह ऐसे होते हैं जिसमें लड़की को कानूनी तौर पर पत्नी का दर्जा कभी नहीं मिल पाता। ना तो वह गुजारा भत्ता के लिए दावा कर सकती है और ना ही दहेज एक्ट अथवा पत्नी को प्राप्त दूसरे प्रकार के कानूनी अधिकारों का उपयोग कर सकती है।
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के अनुसार शून्य विवाह के आधार:-
1. द्विविवाह:- अगर पहली पत्नी के जीवित रहते पति दूसरा विवाह कर लेता है तो उसका दूसरा विवाह शून्य होगा। इसी प्रकार यदि सुहागन स्त्री किसी अन्य पुरुष से विवाह कर ले तो ऐसा विवाह शून्य होगा। दूसरा विवाह करने से पहले न्यायालय द्वारा विवाह संबंध विच्छेद की डिक्री प्राप्त करना अनिवार्य है।
2. सपिण्ड संबंधों के भीतर विवाह शून्य होता है
सपिण्ड अर्थात गोत्र, कुल में शादी करना वैध नहीं माना जाएगा। हिंदू विवाह के अधीन विवाह के पक्षकारों में सपिंड नातेदारी का विशेष ध्यान रखा जाता है तथा यह ध्यान देने का प्रयास किया गया है कि विवाह के पक्षकार एक दूसरे से सपिंड अर्थात गोत्र में नहीं हो। वर्तमान अधिनियम के अंतर्गत पिता की ओर से पाँच पीढ़ियां तथा माता की ओर से तीन पीढ़ियां सपिंड नातेदारी के भीतर होती है। इस प्रकार के विवाह को शून्य माना जाता है।
3. प्रतिषिद्ध संबंधों के बीच विवाह शून्य होता है
प्रतिषिद्ध नातेदारी को सरल भाषा में कहें, तो ब्लड रिलेशन में शादी की मनाही होती है अर्थात दोनों पक्षों का रिश्ता भाई-बहन, चाचा-भतीजी, मामा-भांजी, फूफी-भतीजा, मौसी-भांजे आदि का नहीं होना चाहिए। इस प्रकार के विवाह को शून्य माना जाता है।
विवाह शून्य होने से क्या प्रभाव पड़ता है
दंपति में से कोई भी कभी भी दूसरी शादी कर सकता है। पीड़ित पक्ष को कानूनी संरक्षण नहीं मिलेगा।
लड़की दहेज एक्ट के तहत मामला दर्ज नहीं करा सकती।
दोनों में से कोई भी तलाक के लिए आवेदन नहीं कर सकता।
लड़की गुजारा भत्ता के लिए दावा नहीं कर सकती।
लड़की, पति की संपत्ति में दावा नहीं कर सकती।
लड़का, पत्नी के अवैध संबंध होने पर भी FIR दर्ज नहीं करा सकता।
लड़का, पत्नी द्वारा दूसरी शादी करने पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकता।
लड़का, पत्नी के किसी और के साथ रहने पर न्यायालय में याचिका दाखिल नहीं कर सकता।
हिंदू विवाह अधिनियम में कुल कितनी धाराएं हैं
भारत में प्रचलित हिंदू विवाह अधिनियम में कुल 38 धाराएं होती हैं। हिंदू मैरिज एक्ट भारत की संसद द्वारा सन 1955 में पारित किया गया था और तब से यह भारत में प्रचलित कानून है। इसके परिचय में कहा गया है कि स्मृति काल से ही हिंदुओं में विवाह एक पवित्र संस्कार माना जाता है इसलिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में भी इसी भावना को बनाए रखने का प्रयास किया गया है।
हिंदू विवाह अधिनियम पीडीएफ
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 मात्र 16 पेज की पीडीएफ फाइल में उपलब्ध है। इसमें निम्न जानकारियां दी गई है।
हिंदू विवाह के लिए शर्तें।
हिंदू विवाह का रजिस्ट्रीकरण।
दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन और न्यायिक पृथक्करण।
विवाह की अकृतता और विवाह विच्छेद।
अधिकारिता और प्रक्रिया।
व्यािनृतयां और ननरसन।
हमेशा ध्यान रखें कि महत्वपूर्ण जानकारियों के दस्तावेज आधिकारिक वेबसाइट से ही डाउनलोड किए जाएं। हम यहां पर डायरेक्ट लिंक उपलब्ध करा रहे हैं। कृपया यहां पर क्लिक करें। इसके माध्यम से आप ऑफिशियल वेबसाइट के उस यूआरएल पर रीडायरेक्ट हो जाएंगे जहां पर हिंदू मैरिज एक्ट अपलोड किया गया है। आप सिंगल क्लिक से डाउनलोड कर सकेंगे।
:- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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