हम सभी जानते हैं कि किसी घर या दुकान अथवा स्थान की तलाशी लेने के लिए वारंट का होना अनिवार्य है लेकिन कई बार पुलिस बिना वारंट के किसी स्थान की तलाशी लेती है। संज्ञेय अपराध यानी गंभीर अपराध की स्थिति में पुलिस को यह अधिकार होता है कि यदि तलाशी देना अनिवार्य है और मजिस्ट्रेट से तलाशी वारंट प्राप्त करने का समय नहीं है तो पुलिस अपने स्तर पर एक न्यूनतम कार्रवाई करके तलाशी ले सकती है परंतु प्रश्न यह है कि जिस व्यक्ति के घर- स्थान की तलाशी ली गई है। उस व्यक्ति के अधिकार क्या है। वह कैसे पता करेगा कि उसके स्थान की तलाशी किस कारण से ली गई है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 165 की परिभाषा:-
कोई भी पुलिस थाने का थाना अधिकारी जो किसी संज्ञेय अपराध का अन्वेषण कर रहा है वह अपनी अधिकारिता थाने सीमा के अंतर्गत बिना वारण्ट के तलाशी ले सकता है लेकिन तलाशी लेने से पूर्व थाने का अन्वेषण करने वाला अधिकारी तलाशी की प्रक्रिया कैसे पूर्ण करनी है, किस स्थान की तलाशी ली जानी है, अपराध से घटित कौन सी चीज प्राप्त होने की संभावना है, तलाशी के समय कौन कौन व्यक्ति मौजूद हो सकते हैं यह सभी बातों को अभिलिखित करेगा एवं संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को भी इसकी रिपोर्ट देगा।
नोट:- अगर अन्वेषण करने वाला अधिकारी या थाने का प्रभारी अचानक उस समय उपस्थित नहीं हो पता है जब उसे तलाशी लेनी होती है तब वह अपने अधीनस्थ किसी भी पुलिस अधिकारी को लिखित आदेश देकर तलाशी के लिए भेज सकता है लेकिन आदेश लिखित होना आवश्यक होता है।
अगर पुलिस अन्वेषण अधिकारी या अन्य अधीनस्थ पुत्र अधिकारी द्वारा तलाशी पूर्ण हो जाती है,तब उस पुलिस का कर्तव्य होगा कि ऐसी तलाशी की रिपोर्ट तुरंत नजदीकी मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
जिस व्यक्ति के घर में, स्थान में तलाशी ली गई है उसका धारा 165(5) के अंतर्गत यह अधिकार होगा कि वह तलाशी की रिपोर्ट की प्रतिलिपि मजिस्ट्रेट से निःशुल्क प्राप्त कर सकता है।
【उपर्युक्त नियमो के आधार पर ली गई तलाशी पूर्ण रूप से वैध होगी अगर धारा 165 के उपबंधित नियमो का उल्लंघन होने पर संज्ञेय अपराध की तलाशी अवैध मानी जा सकती है एवं इस धारा के अंतर्गत पुलिस अधिकारी अपनी सीमा से अलग अन्वेषण नहीं कर सकता है।】:- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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