जब कोई पुलिस अधिकारी संज्ञेय या असंज्ञेय अपराध का इन्वेस्टिगेशन कर रहा होता है तब वह आरोपी का अपराध को साबित करने के लिए बहुत सारे एविडेन्स(साक्ष्य) एकत्रित करता है एवं इनकी रिपोर्ट वह समय समय पर न्यायालय को केस-डायरी के अंतर्गत बताता रहता है। लेकिन हर अपराध का अन्वेषण करने के लिए एक निश्चित समय सीमा होती है, अपराध का इन्वेस्टिगेशन पूरा होने के बाद पुलिस अधिकारी उसकी सम्पूर्ण रिपोर्ट अर्थात चार्ज-शीट मजिस्ट्रेट या न्यायालय को देगा, कैसी बनती है पुलिस की चार्ज-शीट जानिए?
FIR के बाद पुलिस को कितने जांच दिन में जांच पूरी करनी होती है
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 के अनुसार कोई पुलिस अधिकारी अगर किसी अपराध का अन्वेषण कर रहा है वह अपराध से संबंधित अपनी रिपोर्ट को बिना बिलम्ब किये 90 दिनों में न्यायालय या मजिस्ट्रेट को देगा।
अगर अपराध बलात्संग (376,क, ख, ग, घ, कख, घक, घख आदि) या पास्को एक्ट का हो तब पुलिस अन्वेषण अधिकारी को 60 दिनों के भीतर पूरी इन्वेस्टिगेशन बिना किसी बिलम्ब के करना होगा।
आपराधिक प्रकरण की इन्वेस्टिगेशन के बाद चार्ज शीट कैसे बनती है
कोई भी पुलिस अधिकारी जो किसी अपराध का अन्वेषण कर रहा है वह अपनी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट को निम्न प्रकार से बनाकर मजिस्ट्रेट जो भेजेगा जानिए:-
क. सबसे पहले पक्षकारों (पीड़ित, अरोपी) के नाम।
ख. प्रथम सूचना रिपोर्ट का प्रारुप।
ग. मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम अर्थात साक्षी, गबाह आदि।
घ. अपराध हुआ है या नहीं, अगर हुआ हो तो किसके द्वारा और अपराध का कारण क्या है।
ङ. अरोपी पुलिस अभिरक्षा में है या नहीं।
च. किसी अरोपी को जमानत बंध-पत्र पर छोड़ा गया है या बिना जमानत बंध-पत्र के सम्पूर्ण जानकारी।
छ. क्या आरोपी को न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया है।
ज. महिला अपराध बलात्संग या पास्को एक्ट होने पर मेडिकल रिपोर्ट(MLC) संलग्न करे।
:- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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