विवाह के बाद तलाक की स्थिति में जीवन साथी के पास कुछ अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं परंतु यदि विवाह अवैध घोषित हो जाए तो जीवन साथी के पास कोई अधिकार नहीं रह जाता। यानी ऐसी स्थिति में महिला, अपने पति पर गुजारा भत्ता के लिए दावा नहीं कर सकती। ना ही, ऐसी महिला की संतान पुरुष की संपत्ति में हकदार होगी। आइए जानते हैं सामाजिक रीति रिवाज का पालन करने के बाद हुआ विवाह किन परिस्थितियों में न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया जा सकता है।
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12 के अंतर्गत विवाह शून्यकरणीय के आधार:-
अगर किसी स्त्री से कोई व्यक्ति धोखा देकर हिन्दू रीति रिवाज या कानून के अंतर्गत विवाह कर लेता है बाद में उस स्त्री को पता चले कि उसके साथ छल-कपट या धोखा दिया है तब वह न्यायालय में विवाह शून्यकरणीय की याचिका दायर कर सकती है।
1. नपुंसकता के कारण विवाह शून्य:-
हिन्दू विवाह में नपुंसकता का अर्थ होता है विवाह का कोई भी पक्षकार द्वारा संतान उत्पत्ति न होना दिनों में से किसी को भी इस प्रकार की बीमारी का होना नपुंसकता होता है। यह मानसिक तथा शारीरिक दोनो प्रकार की हो सकती है।
2.जड़ता या पागलपन के कारण विवाह शून्य:-
विवाह होने के बाद अगर किसी भी पक्षकार को लगता है कि जिस जीवन साथी के साथ उसको जीवनयापन करना है वह जड़ (क्रुर) बुद्धि का है या उसे पागलपन के दौरे आते हैं जो बाद में एक गम्भीर समस्या हो सकती है तब कोई भी पक्षकार विवाह को शून्यकरणीय करवा सकता है।
3. शादी से पहले गर्भधारण के कारण विवाह शून्य:-
अगर कोई स्त्री विवाह से पहले ही गर्भवती रही है जिसका उस पक्षकार को विवाह के समय पता नहीं था। जिसने ऐसी महिला के साथ विवाह किया है। तब ऐसा व्यक्ति विवाह शून्यकरणीय के लिए याचिका दायर कर सकता है। ऐसी महिला न तो उस व्यक्ति की पत्नी होगी न ही उसकी संतान जायज कहलाएगी।
4. छल-कपट अथवा धोखे के कारण विवाह शून्य:-
अगर किसी स्त्री या पुरुष का विवाह उससे छल-कपट करके किया गया है या उससे कोई बातें छुपाकर अर्थात जाति, धर्म, समाज, वर्ग, उम्र आदि छुपाकर, या धोखा देकर किया गया था तब यह शून्यकरणीय का आधार होगा।
"किसी स्त्री से जबरदस्ती उसकी मर्जी के खिलाफ या उस पर किसी भी प्रकार का दबाव देकर या दिलवाकर किया गया विवाह, विवाह शून्यकरणीय का चौथा आधार होगा।
नोट:- हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत विवाह तभी अवैध या शून्यकरणीय होगा तब पति या पत्नी द्वारा याचिका दायर की जाएगी, उनके माता, पिता या नातेदार द्वारा याचिका दायर मान्य नहीं होगी एवं अगर विवाह का पक्षधर ऐसे विवाह को हमेशा वैध रखना चाहता है तो रख सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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