जबलपुर। भारत के लोकतंत्र में चुनाव एक अनिवार्य आयोजन है परंतु आरक्षण की राजनीति के कारण मध्यप्रदेश के नगरिया निकाय चुनाव लगातार टलते जा रहे हैं। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट स्तर पर नगरिया निकाय चुनाव आरक्षण विवाद का कोई निराकरण नहीं निकल पाया। शिवराज सिंह सरकार अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। कुल मिलाकर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के साथ नगरीय निकाय चुनाव नहीं होंगे। उसके आसपास होने की संभावना भी नहीं है।
मध्यप्रदेश नगरीय निकाय चुनाव- हाईकोर्ट में कार्यवाही का विवरण
सबसे पहले सितंबर 2021 में इस मामले में हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में सुनवाई हुई थी। तब प्रदेश सरकार ने चार सप्ताह का समय मांगते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की मांग की थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने उनको समय दिया था। इसी दौरान हाईकोर्ट जबलपुर ने चुनाव में रिजर्वेशन के सभी मामले अपने पास बुला लिए थे। यहां 28 अक्टूबर को सुनवाई हुई, जिसमें स्टे बरकरार रखा गया है। फिलहाल प्रदेश के लोगों नगरीय निकाय चुनाव के लिए इंतजार करना होगा।
नगरीय निकाय चुनाव मामले में हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में अधिवक्ता मानवर्द्धन सिंह तोमर ने नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद में अध्यक्ष और अन्य तरह से आरक्षण प्रक्रिया को चुनौती दी थी। इसमें याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी अभिषेक सिंह भदौरिया ने की थी।
चुनाव में आरक्षण को लेकर 10 मार्च 2021 से विवाद चल रहा है
याचिका पर पहली सुनवाई 10 मार्च 2021 को की गई थी। इसके बाद प्रदेश सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए दो दिन का समय दिया गया था। ग्वालियर हाईकोर्ट की युगल पीठ ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कहा था कि चूंकि प्रथम दृष्ट्या ऐसा प्रतीत होता है कि 10 दिसंबर 2020 को जारी आरक्षण आदेश में रोटेशन पद्धति का पालन नहीं किया गया है। हाईकोर्ट ने एक अन्य प्रकरण में ऐसा मान्य किया है कि प्रथम दृष्ट्या आरक्षण रोटेशन पद्धति से ही लागू होना चाहिए। ऐसी स्थिति में इस पूरे प्रकरण के अंतिम निराकरण तक उक्त पूरे आरक्षण को स्थगित (स्टे दिया) कर दिया गया था। इसके बाद यह मामला जबलपुर चला गया था।
हाईकोर्ट ने आरक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाई है, चुनाव पर नहीं
इस मामले में हाईकोर्ट ने मार्च 2021 में दो नगर निगम, 79 नगर पालिका और नगर पंचायत के आरक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगाने के बाद मध्य प्रदेश शासन से जवाब मांगा था। हाईकोर्ट में जवाब पेश करते हुए शासन की तरफ से कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 243 और नगर पालिका अधिनियम की धारा 29 में नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायतों के जो अध्यक्ष चुने जाने हैं, उनके पदों के आरक्षण का अधिकार शासन को दिया है।
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए जो पद आरक्षित किए जाते हैं, वह जनगणना के आधार पर तय किए जाते हैं। जनसंख्या के समानुपात के आधार पर आरक्षण किया जाता है। ऐसा नहीं है कि एक पद आरक्षित हो गया है, उसे दोबारा आरक्षित नहीं किया जा सकता। महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष व नगर पंचायत अध्यक्षों के पद आरक्षित करने में कोई गलती नहीं की है। कानून का पालन करते हुए आरक्षण किया गया है। मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से पेश की गई दलील सुनने के बाद याचिकाकर्ता मानवर्द्धन सिंह तोमर ने कहा कि आरक्षण में रोस्टर का पालन नहीं किया गया था।
अब सुप्रीम कोर्ट में होगा नगरीय निकाय चुनाव का फैसला
नगरीय निकाय चुनाव में नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायत में आरक्षण की प्रकिया पर रोक लगाते हुए ग्वालियर होईकोर्ट के स्टे को जबलपुर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने भी बरकरार रखा है। अब इस मामले में प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है। अब सुप्रीम में इस पूरे मामले में फैसला होना है। हालातों को देखते हुए फिलहाल यही माना जा रहा है कि फिलहाल वक्त के लिए प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव टल गए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आगे की राह बनेगी।