जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नर्मदा किनारे के कलेक्टरों को नोटिस जारी करके नर्मदा नदी का हाई फ्लड लेवल (बाढ़ की स्थिति में नर्मदा नदी का पानी जहां तक पहुंचता है वहां तक) फिक्स करके जानकारी भेजने के लिए कहा है। वह सारी संपत्ति अतिक्रमण में मानी जाएगी, जिसे बाढ़ की स्थिति में नर्मदा नदी का पानी स्पर्श करता है।
नर्मदा नदी का सीमांकन बाढ़ का पानी करेगा
हाई कोर्ट ने जबलपुर में नर्मदा किनारे अतिक्रमण के मामले को राज्य स्तरीय रूप देते हुए व्यापक सुनवाई का मन बना लिया है। इसके तहत महज जल संग्रहण क्षेत्र का 300 मीटर का दायरा नहीं बल्कि बाढ़ आने की सूरत में नर्मदा का कहां तक स्पर्श रहा है, उसे आधार बनाया जाएगा। जबलपुर निवासी अधिवक्ता सतीश वर्मा ने 2013 में हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।
नर्मदा नदी की जमीन सरकारी रिकॉर्ड में माफियाओं के नाम करने का मामला
जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि नर्मदा नदी के बेसिन में बने अवैध निर्माणों व अतिक्रमणों को बचाया जा रहा है। राजस्व निरीक्षकों व पटवारियों की मिलीभगत से नर्मदा किनारे की जमीनों को निजी व्यक्तियों के नामों पर शासकीय रिकार्ड में दर्ज कर लिया गया है। लिहाजा, सभी राजस्व रिकार्ड की जांच कराई जानी चाहिए। यह दस्तावेजों में हेराफेरी से जुड़ा गंभीर मामला बन गया है। इसलिए सबसे पहले प्रभावशाली लोगों के नर्मदा किनारे बने अवैध निर्माणों व अतिक्रमणों को तोड़े जाने के आदेश जारी होने चाहिए।
जबलपुर कलेक्टर में नर्मदा की जमीन पर अतिक्रमण नहीं हटाया
बहस के दौरान अधिवक्ता सतीश वर्मा ने आरोप लगाया कि कलेक्टर जबलपुर द्वारा नर्मदा किनारे 300 मीटर के दायरे में अवैध निर्माणों व अतिक्रमणों को हटाए जाने के आदेश का पालन सुनिश्चित करने के स्थान पर गुमराह करने का खेल खेला जा रहा है। इससे साफ है कि मामले के नेपथ्य में राजनीतिक दबाव कार्य कर रहा है। लिहाजा, ठोस कार्रवाई की जाए।