देवदासी प्रथा:- भारत में प्रचलित एक प्रथा थी जिसमें लड़कियों की शादी मंदिर में देवताओं/ईश्वर से की जाती थी और फिर यह लड़कियाँ मंदिर में रहकर मंदिर की साफ़-सफ़ाई, देख-रेख, नृत्य आदि करती थीं। दर्शनार्थी की सहायता करती थी। साथ ही यह देवदासियाँ मंदिर के आस-पास के छोटे बच्चों (लड़के-लड़कियों) को नृत्य-संगीत आदि की शिक्षा देती थी। बच्चों को धर्म, शास्त्र आदि की बातें सिखाती थी। देवदासी ऐक सु-व्यवस्थित प्रथा थी।
परंतु वर्तमान समय में कुछ भ्रष्ट बुद्धि लोगों के द्वारा देवदासी को बुरी नज़रों से देखा जाने लगा और उनका यौन उत्पीड़न किया जाने लगा। जबर्दस्ती उन्हें दासी बनाया जाने लगा। आज भी बहुत से लोग SC-ST वर्ग की महिलाओं को जबर्दस्ती मंदिर, आश्रम में भेजते हैं ताकि पाखंडी बाबाओं से इनका शोषण होता रहे। लेकिन यह एक गंभीर अपराध होगा जानिए।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1) (ट) की परिभाषा:-
अगर कोई अन्य वर्ग का व्यक्ति किसी अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग की महिलाओं को किसी देवदासी के रूप में पूजा स्थल, मंदिर, किसी धार्मिक संस्थान (आश्रम) आदि में समपर्ण होने के लिए जबर्दस्ती करता है या किसी प्रकार का प्रलोभन, लालच देकर स्वीकृति लेता है तब ऐसा करने वाला व्यक्ति अधिनियम की धारा 3(1) (ट) के अंतर्गत दोषी होगा।
सजा(दण्ड) का प्रावधान:-
धारा 3(1) (ट)के अपराध का विचारण विशेष न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होंगे। इस धारा के अपराध के लिए अधिकतम पाँच वर्ष की सजा एवं जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है।
पीड़ित व्यक्ति को राहत राशि
अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम,1995 नियम 12(4) के अनुसार इस अपराध के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति को राज्य शासन द्वारा एक लाख की आर्थिक सहायता दी जाती है। यह राशि जिला कलेक्टर या SDM या जिला संयोजक अनुसूचित जाति एवं जनजाति कार्यालय द्वारा स्वीकृत होती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com