शरद पूर्णिमा आज है या कल, व्रत एवं श्री सत्यनारायण कथा कब होगी - sharad purnima date 2021

Bhopal Samachar
शरद पूर्णिमा को लेकर पूरे देश भर में कन्फ्यूजन की स्थिति बन गई है। स्थिति तब बनती है जब विद्वानों के मत में भिन्नता हो शरद पूर्णिमा के विषय में विद्वानों द्वारा पंचांग का अपने तरीके से अध्ययन किया गया है और अपनी-अपनी मान्यता निष्कर्ष निकाले गए हैं। हम आपको बताते हैं कि शरद पूर्णिमा कब मनाई जानी चाहिए और पूर्णिमा का व्रत एवं श्री सत्यनारायण भगवान की कथा कब होगी।

शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, मान्यता क्या है

अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। भारतवर्ष के शास्त्रों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन अमृत निकला था। शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा ग्रह के खाद्य पदार्थों (दूध-चावल सहित सफेद रंग के सभी खाद्य पदार्थ) के व्यंजन बनाए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है एवं जो व्यंजन चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे रखे जाते हैं, उनमें कई प्रकार के रोगों का नाश करने की शक्ति का संचार होता है और ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है। 

शरद पूर्णिमा कब मनाना है 

शरद पूर्णिमा चंद्रमा का त्यौहार है। पंचांग के अनुसार भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दिनांक 19 अक्टूबर 2021 को सायं काल 7:00 बजे (भौगोलिक दृष्टि से यह समय भारत में थोड़ा आगे पीछे रहेगा) पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होती है और 20 अक्टूबर की रात्रि 8:00 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। इस हिसाब से शरद पूर्णिमा का त्यौहार 19 अक्टूबर 2021 को मनाया जाना चाहिए। 

पूर्णिमा का व्रत और श्री सत्यनारायण की कथा कब करना है

क्योंकि दिनांक 20 अक्टूबर 2021 को सूर्योदय के समय पूर्णिमा तिथि होगी एवं सूर्यास्त तक पूर्णिमा तिथि ही रहेगी इसलिए पूर्णिमा का व्रत और श्री सत्यनारायण भगवान की कथा दिनांक 20 अक्टूबर 2021 को करना चाहिए।

विद्वानों में मतभेद क्यों है 

दरअसल कोई मतभेद नहीं है। यह मान्यताओं का प्रश्न है। वैष्णव संप्रदाय के लोग उदया तिथि को महत्व देते हैं जबकि शैव संप्रदाय के लोग मुहूर्त को महत्व देते हैं। वैष्णव संप्रदाय यानी भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करने वाले और शैव संप्रदाय यानी भगवान शिव को अपना आराध्य मानने वाले लोग। हालांकि इस विवाद का निवारण भगवान विष्णु और शिव ने मिलकर कई बार कर दिया लेकिन कुछ विद्वान अभी भी वैष्णव एवं शैव परंपराओं का पालन करते हैं। एवं अपने अनुसंधान के निष्कर्ष की घोषणा करते समय वैष्णव एवं शैव का उल्लेख नहीं करते। इसीलिए पब्लिक कंफ्यूज हो जाती है।

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