यदि किसी व्यक्ति पर अपराध सिद्ध हो जाता है तो कोर्ट से उस अपराध के अनुसार निर्धारित दंड का आदेश देता है। जघन्य हत्या के मामले में कोर्ट द्वारा अपराधी को अधिकतम मृत्यु दंड का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने टी.वी. वथीश्वरन बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में फैसला दिया था कि अपराधी को फांसी देने में 2 वर्ष से अधिक का विलंब हो गया है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का अतिक्रमण है और उसे आजीवन कारावास में बदला जा सकता है। आइए जानते हैं कि क्या इस फैसले के आधार पर सभी प्रकार के मृत्यु दंड 2 वर्ष बाद उम्र कैद में बदल सकते हैं।
शेर सिंह बनाम पंजाब राज्य:-
मामले में उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की पीठ ने उपर्युक्त निर्णय को उलट दिया और यह अभिनिर्धारित किया कि मृत्युदण्ड देने में अतिविलम्ब का होना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हैं, क्योंकि इसमें प्रक्रिया अयुक्तियुक्त, अनुचित एवं अन्यायपूर्ण हो जाती है जो नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध हैं किंतु दो वर्ष का नियम कोई सर्वमान्य नियम नहीं है एवं प्रत्येक मामले को उसके तथ्यों के आधार पर निपटाया जायगा ओर मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में परिवर्तन किया जा सकता है।
दो वर्ष का नियम बदला भी जा सकता है। मृत्युदण्ड देने में दोष-सिद्ध व्यक्ति के आचरण के कारण विलम्ब हुआ है या किसी अन्य कारण से अपराध की प्रकृति और उसका समाज पर प्रभाव, उसके दोहराये जाने की संभावना आदि पर विचार करके न्यायालय निर्णय करेगा कि मृत्यु-दण्ड को आजीवन कारावास में बदला जाय या नहीं। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com