भोपाल। हादसे में मौत हमेशा पीड़ादायक होती है परंतु यह पीड़ा तब आक्रोश में बदल जाती है जब डॉक्टर यह कहे कि बच्चा बीमार था और हादसे से पहले ही मर गया था। हमीदिया अग्निकांड मामले में ऐसा ही हो रहा है। अस्पताल से 12 बच्चों के शव निकाले जा चुके हैं परंतु प्रशासन शुरू से 4 बच्चों की मौत पर अड़ा रहा, बड़ी मुश्किल से पांचवी मौत स्वीकार की।
भोपाल की हमीदिया हॉस्पिटल में 40 में से 5 बच्चों की मृत्यु हुई तो 35 कहां है
हमीदिया हॉस्पिटल कैंपस के कमला नेहरू अस्पताल के चिल्ड्रन वार्ड में कुल 40 बच्चे भर्ती थे। मंत्री विश्वास सारंग ने कहा था कि इनमें से 36 बच्चे को सकुशल बचा लिए गए हैं। मंत्री श्री सारंग के बयान के बाद मोर्चरी में 8 बच्चों के शव पहुंचे परंतु मंत्री श्री सारंग एवं प्रशासन चार बच्चों की मौत का बयान दोहराता रहा। बढ़ते-बढ़ते मृत बच्चों की संख्या 12 हो गई है लेकिन प्रशासन ने पांचवें व्यक्ति की मृत्यु घोषित की है। सवाल सिर्फ इतना सा है कि यदि 40 में से 5 बच्चों की मृत्यु हुई है तो 35 बच्चे कहां है।
डॉक्टर कहते हैं वह तो पहले ही मर गए थे
हादसे में हुई हर मौत पीड़ादायक होती है। बच्चा किसी का भी हो उसकी मृत्यु सभी के लिए शोक का कारण होती है परंतु यह शोक, तब आक्रोश बन जाता है जब डॉक्टर खुद को भगवान मानते हुए बेतुकी बातें करें। अस्पताल प्रबंधक डा. लोकेंद्र दवे का बयान प्रकाशित हुआ है। डॉक्टर दुबे का कहना है कि कुछ बच्चे तो पहले ही मर गए थे। सवाल सिर्फ इतना सा है कि यदि बच्चों की मृत्यु हादसे से पहले हुई थी तो फिर उनके परिजनों को क्यों नहीं बताया। हादसे से पहले डेथ सर्टिफिकेट क्यों नहीं बनाया। भोपाल की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया BHOPAL NEWS पर क्लिक करें.