हम भारत के लोग एक कल्याणकारी राज्य के नागरिक हैं, जिसका कर्तव्य जन साधारण के सुख एवं समृद्धि की अभिवृद्धि करना है। इसी उद्देश्य से नीति-निदेशक सिद्धांतों में कुछ आर्थिक और सामाजिक लक्ष्यों को निहित किया गया है जिनका पालन करना राज्यों का परम कर्तव्य है। राज्य का यह कर्तव्य है कि वह जनता के हित और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए यथाशक्ति कार्यान्वित करने का प्रयास करे। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39 सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार देता है। ये तो राज्य के नीति निदेशक तत्व है यह भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार नहीं है हम बात कर रहे हैं क्या राज्य सरकार से आश्रय लेने का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है जानते हैं इसका जवाब।
महत्वपूर्ण जजमेंट- चमेली सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
उक्त मामले में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया कि आश्रय पाने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मूल अधिकार हैं एवं राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के लिए आवास सुविधा प्रदान करे।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आश्रय की परिभाषा
न्यायमूर्तियों ने यह कहा कि किसी मनुष्य को आश्रय देने का तात्पर्य यह नहीं है कि केवल उसके प्राण एवं अंगों की रक्षा की जाए। आश्रय ऐसा हर है जहाँ उसे शारिरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास का अवसर मिलता हो, आश्रय देने का अधिकार सिर्फ केवल सर के ऊपर छत देने से नहीं है बल्कि ऐसे घर से है जिसमे वे सभी सुविधाएं उपलब्ध हो जो मनुष्य को विकसित के करने के लिए सहायक हो।
राज्य का कर्तव्य यह है कि वह अपने आर्थिक स्त्रोतों को देखते हुए सभी नागरिकों को ऐसे आश्रय प्रदान करने का प्रयास करें एवं निर्धन अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को देश की मुख्य धारा में लाने के लिए राज्य का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि उन्हें आवास सुविधाए प्रदान करे। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com