अगर भारत का कोई नागरिक समुद्र या अन्य कोई ऐसा स्थान जो भारत से बाहर किसी देश में हो तब वह व्यक्ति कोई अपराध को अंजाम दे देता है एवं अपराध को अंजाम देने के बाद भारत में आकर रहने लगे या विदेश का कोई नागरिक भारत भारत में आकर कोई अपराध कर देता है तब ऐसे आरोपी व्यक्तियों का मामला भारत के न्यायालय द्वारा या विदेश के न्यायालय द्वारा सुना जाएगा जानते हैं आज।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 188 की परिभाषा
जब कोई अपराध भारत से बाहर-
• भारत के किसी नागरिक द्वारा खुले समुद्र या अन्य कोई स्थान पर किया गया है या
• कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है (विदेशी व्यक्ति) उसके द्वारा भारतीय जहाज या भारतीय एअर-लाइंस (भारतीय वायु विमान) पर किया गया हो, तब ऐसे अपराध के मामले की सुनवाई उस न्यायालय द्वारा सुनी जाएगी जिस स्थान पर आरोपी व्यक्ति पाया जाता है। (पाया जाने का अर्थ होता है कि व्यक्ति स्थाई या अस्थाई रूप से निवास कर रहा है)
"लेकिन अगर अपराध दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा धारा 177 से 185 के उपबंधों के अनुसार हो तो अपराध के संज्ञान लेने से पहले केंद्रीय सरकार की स्वीकृति लेना आवश्यक है।,
उधारानुसार वाद- अजय अग्रवाल बनाम भारत संघ:-
उक्त मामले में बैंक के साथ छल करने का षड्यंत्र अनिवासी भारतीय जो दुबई में रहता था के साथ बात चीत करके किया गया था। समस्त बाहरी क्रियाकलाप भारत में किए थे। यह अभिनिर्धारित किया गया कि षड्यंत्र एक निरंतर अपराध है और चूंकि अपराध निरंतर चल रहे घटनाक्रम के दौरान किया गया जिससे चंडीगढ स्थिति पंजाब नेशनल बैंक के साथ छल को कार्य रूप दिया गया इसलिए विभिन्न अपराधो के लिए धारा 188 के परंतु के अधीन सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com