समाज में जब भी कोई अपराध (संज्ञेय या असंज्ञेय) होता है तो पीड़ित व्यक्ति प्रथम सूचना देने के लिए पुलिस के पास जाता है। कुछ मामलों में पुलिस FIR दर्ज कर लेती है तो कुछ मामलों में NRC रजिस्टर कर लेती है, लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पुलिस सुनवाई नहीं करती। अपराध होने के बावजूद किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं करती। तब पीड़ित व्यक्ति उस क्षेत्र के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 190 की परिभाषा -:
अगर किसी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निम्न प्रकार से रिपोर्ट या शिकायत मिलती है:-
1. उन तथ्यों जिसमे अपराध बनता है। उसका परिवाद (शिकायत) दर्ज होती है।
2. ऐसी तथ्यों के बारे में पुलिस रिपोर्ट द्वारा बताया गया हो अर्थात पुलिस की FIR पर।
3. कोई भी आम नागरिक जो मजिस्ट्रेट को अपराध की सूचना देता है कि अपराध किया है साक्ष्य सहित।
तब मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसे अपराध पर तुरंत संज्ञान लेगा।
क्या किसी अपराध की जांच मजिस्ट्रेट द्वारा सीधे की जा सकती है
कोई भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) किसी भी द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को ऐसे अपराध की जाँच या विचारण के लिए शक्ति दे सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com