समाज में कोई भी अपराध हो, नागरिकों द्वारा पुलिस को बताया जाता है, पुलिस प्रकरण दर्ज करती है और सजा सुनिश्चित करने के लिए अपराधी को न्यायालय के सामने पेश किया जाता है। यदि अपराध होने के बावजूद पुलिस द्वारा FIR दर्ज नहीं की जाती तो आम नागरिक न्यायालय में जाकर निवेदन करता है। कोर्ट मामले का संज्ञान लेती है और पुलिस को प्रकरण दर्ज करने के लिए आदेशित करती है लेकिन कुछ अपराध ऐसे हैं जिन्हें न तो पुलिस दर्ज कर सकती है और ना ही कोर्ट के द्वारा सीधे संज्ञान में लिया जा सकता है। आइए जानते हैं कौन से अपराध है और कैसे दर्ज की जाती है:-
आईपीसी की वह धारा है जिनके तहत पुलिस सीधे मामले दर्ज नहीं कर सकती
भारतीय दण्ड संहिता, 1980 का अध्याय-6 की धारा 121 से 130 राज्यों के विरुद्ध अपराध अर्थात राजद्रोह संबंधित अपराध।
आईपीसी की धारा 153 (क) धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, भाषा आदि के बीच में शत्रुता उत्पन्न करना।
धारा 295 (क) किसी धर्म को अपमान करना एवं धर्म संबंधित ठेस पहुंचाना।
धारा 501 की उपधारा (1) कोई ऐसी सूचना फैलाना जिससे सेनाओं में विद्रोह होने की संभावना हो।
धारा 108- (क) भारत से बाहर के अपराधों का भारत में रहकर उकसाना।
धारा 153 (ख) राष्ट्रीय, एकता, अखंडता प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले बयान देना।
धारा 505 (ii) किसी वर्ग, जातियोँ आदि में घृणा एवं शत्रुता उत्पन्न करना।
धारा 120 (ख) किसी भी प्रकार के ऐसे अपराध का षड्यंत्र करना जिस अपराध की सजा मृत्यु-दण्ड या आजीवन हो।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा-196 की परिभाषा
1. कोई भी न्यायालय निम्न अपराधों में:-
(i) भारतीय दण्ड संहिता के ऊपर वर्णित धारा अध्याय-6 अर्थात धारा 121 से 130 एवं धारा 153 क, धारा 295 क या 505 की उपधारा 1 या धारा 108 क के अंतर्गत अपराध करेगा तब इसका संज्ञान न्यायालय बिना केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार की मंजूरी के नहीं लेगा।
2. कोई भी न्यायालय ऊपर वर्णित भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153-ख या धारा 505 की उपधारा(2,3) से दंडित अपराध का संज्ञान बिना केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट की स्वीकृति के बिना नहीं लेगा।
3. कोई भी न्यायालय भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120 ख के अधीन संज्ञान बिना राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट की स्वीकृति के नहीं ले सकता है।
अर्थात राज्यों के विरुद्ध, धर्मों के विरुद्ध या जाति, मूल वंश आदि के अपराध पर पुलिस डारेक्ट प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है। बिना केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट के बिना न्यायालय भी अपराध का संज्ञान लेगा अन्यथा नहीं। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com