कोई आम व्यक्ति किसी लोक-सेवक के विधिपूर्ण अधिकार की अवमानना करता है तब भारतीय दण्ड संहिता की धारा 172 से 190 तक दण्ड का प्रावधान किया गया है। कोई व्यक्ति न्यायालय में झूठा साक्ष्य पेश करे या झूठे कथन (शपथ), दस्तावेज, बयान, या किसी भी प्रकार फर्जी दस्तावेजों से न्यायालय द्वारा डिक्री, आदेश, आज्ञप्ति आदि प्राप्त कर लेता है तब ऐसे व्यक्ति के खिलाफ शिकायत कौन कर सकता है एवं कहाँ कर सकेगा, कब उस पर संज्ञान लिया जाएगा। प्रश्न यह भी हैं कि क्या लोकसेवक इन अपराधों की शिकायत थाने में FIR द्वारा करेगा या न्यायालय में जानते हैं।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 की परिभाषा:-
अगर किसी लोकसेवक के विधिपूर्ण आदेश की कोई व्यक्ति अवमानना करता है अर्थात भारतीय दण्ड संहिता की धारा 172 से 188 तक के अपराध करता है (धारा 189 एवं 190 को छोड़कर) तब कोई प्राधिकार रखने वाला लोकसेवक संबंधित न्यायालय (सिविल, राजस्व, दाण्डिक आदि) में लिखित शिकायत करेगा। उसकी शिकायत के बाद ही न्यायालय परिवाद पर संज्ञान लेगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 की उपधारा (2) लोक सेवक प्राधिकारी को यह शक्ति देती है कि वह अपनी शिकायत समझौता द्वारा वापस ले सकता है, लेकिन न्यायालय ने शिकायत पर विचारण शुरू हो गया है तब लोक अधिकारी शिकायत वापस नहीं ले सकता है।
न्यायालय द्वारा परिवाद
अगर कोई व्यक्ति न्यायालय में झूठा साक्ष्य देता है अर्थात झूठा कथन, आरोप, दस्तावेज, बयान, कपटपूर्ण तरीक़े से संपत्ति का समपहरण, डिक्री, आदेश, आज्ञप्ति आदि प्राप्त कर लेता है तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध उसके अपीली अधीनस्थ न्यायालय (सिविल, दाण्डिक, राजस्व) न्यायालय में परिवाद पेश करेगा।
नोट:- कोई भी न्यायालय या अपीली अधीनस्थ न्यायालय किसी भी मामले का संज्ञान लोक सेवक की शिकायत पर या न्यायालय के परिवाद पर लगा। इस प्रकार के अपराध की शिकायत लोकसेवक द्वारा एफआईआर द्वारा पुलिस थाने में नहीं कि जाती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com