भारत में शासकीय कर्मचारी एवं अधिकारियों को संरक्षण प्राप्त है। कुछ ऐसे अपराध होते हैं जिनमें साक्ष्य उपलब्ध होने के बावजूद न्यायालय को संज्ञान लेने से पहले केंद्र अथवा राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक होती है परंतु सभी प्रकार के मामलों के लिए ऐसी शर्त नहीं है। कई प्रकार के अपराध ऐसे हैं जिनके सामने आने पर न्यायालय किसी भी अधिकारी के खिलाफ संज्ञान ले सकता है। आइए इसे समझते हैं:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 197 की परिभाषा
न्यायालय केन्द्र सरकार की अनुमति (मंजूरी) के बिना कब संज्ञान लेगा:-
अगर कोई शासकीय सेवक या मजिस्ट्रेट,सशस्त्र बल (कोई भी सेना जो केन्द्र सरकार के अधीन कार्यरत हो) लोकसेवक अपराध करता है तब न्यायालय को केंद्रीय सरकार की अनुमति के बगैर मामले का संज्ञान नहीं लेगा।
न्यायालय द्वारा राज्य सरकार की अनुमति(मंजूरी) पर संज्ञान लेना:-
अगर कोई शासकीय सेवक या मजिस्ट्रेट, पुलिस बल (अन्य कोई बल राज्य सरकार के अधीन कार्यरत हो) लोकसेवक अपराध करता है तब न्यायालय को राज्य सरकार की अनुमति के बगैर मामले का संज्ञान नहीं लेगा।
न्यायालय सरकार की अनुमति के बिना निम्न अपराध पर तुरंत संज्ञान ले सकता है:-
• धारा 166 क :- कानून के अधीन बनाये गए नियमों, निर्देशो की अवज्ञा करना।
• धारा 166 ख:- किसी पीड़ित का उपचार करने से माना करना।
• धारा 354 (क, ख, ग, घ):- स्त्री की लज्जा भंग करने के उद्देश्य से हमला करना, अश्लील फ़ोटो, वीडियो, आदि लेना या शेयर करना, पीछा करना आदि।
• धारा 370 :- व्यक्ति का दुर्व्यापार करना या उनका शोषण करना।
•धारा 375 (बलात्संग से परिभाषित कोई भी अपराध अर्थात धारा 376 क, ख,ग,घ, कख, घक आदि।)
•धारा 509:- स्त्री की लज्जा शब्दों द्वारा भंग करना अर्थात गाली गलौज आदि करना।
इन अपराधों के लिए न्यायालय को किसी भी प्रकार से सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है न्यायालय इन अपराधों में लोकसेवक पर डारेक्ट संज्ञान ले सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com