कई बार किसी दूसरे पूर्णकालिक व्यवसाय में व्यस्त लोग सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए बार काउंसिल की मेंबरशिप लेते हैं अथवा पार्ट टाइम वकालत करना चाहते हैं। कई बार प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या इस प्रकार की सुविधा दी जानी चाहिए, जब की वकालत एक पूर्णकालिक और सामाजिक जिम्मेदारी वाला प्रोफेशन है। सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकार का एक विवाद आया था। पढ़िए उसका महत्वपूर्ण जजमेंट।
डॉ. हनीराज एल. चुलानी बनाम बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एण्ड गोवा:-
उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि किसी अन्य पेशे जैसे मेडिकल पेशा या कोई पूर्णकालिक व्यवसाय करने वाले लोगों को विधि व्यवसाय (वकालत) के पेशे में आने से रोकने के लिए महाराष्ट्र एवं गोवा अधिवक्ता परिषद द्वारा बनाया गया नियम भारतीय संविधान अनुच्छेद 19 (1) (छ) एवं (6) के अधीन प्रदत्त मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है, बल्कि उस पर युक्तियुक्त रोक लगाना पूर्ण रूप से संवैधानिक हैं।
इस मामले में अपीलार्थी एक डॉक्टर था। उसने एलएलबी की डिग्री प्राप्त कर ली थी और महाराष्ट्र अधिवक्ता परिषद (बार काउंसिल) को एडवोकेट के रूप में अपना नाम पंजीकृत करने के लिए आवेदन किया। अधिवक्ता परिषद की पंजीकृत समिति ने उसको मेडिकल पेशे के साथ-साथ वकालत करने के लिए अनुमति देने से इंकार कर दिया।
इस पर उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि अधिवक्ता परिषद को ऐसे नियम बनाने की शक्ति एडवोकेट एक्ट,1961 के अंतर्गत प्राप्त है, जो विधि व्यवसाय के उच्च मापदंड को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हो।
विधि व्यवसाय एक पूर्णकालिक व्यवसाय है और एक वकील दो नावों पर पैर रख कर इस व्यवसाय के साथ न्याय नहीं कर सकता है। एक डॉक्टर जो अपने पेशे के प्रति समर्पित है, साथ-साथ वकालत का पेशा नहीं कर सकता है। अतः अधिवक्ता परिषद द्वारा बनाये उक्त नियम पूर्ण रूप से संवैधानिक है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com