जबलपुर। मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने लोकायुक्त के उस स्थाई आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें कहा गया था कि तृतीय श्रेणी एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज हुए भ्रष्टाचार के मामलों में खात्मा लगाने से पहले लोकायुक्त की अनुमति अनिवार्य है। भोपाल के सतीश नायक द्वारा लोकायुक्त के आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी।
हाईकोर्ट ने पूछा- लोकायुक्त ने ऐसा आदेश किस अधिकार से जारी किया
मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने लोकायुक्त, गृह सचिव, डीजीपी विशेष पुलिस स्थापना, सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव और अन्य को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि लोकायुक्त ने इस प्रकार का आदेश किस अधिकार से जारी किया। यदि शासन की ओर से उचित जवाब प्रस्तुत नहीं किया जाता तो लोकायुक्त का आदेश स्थाई रूप से खारिज कर दिया जाएगा।
राजधानी भोपाल निवासी सतीश नायक की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि प्रदेश के लोकायुक्त ने 12 अगस्त, 2021 को स्थाई आदेश जारी किया है कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मियों के भ्रष्टाचार के मामलों में खात्मा लगाने के पहले लोकायुक्त की अनुमति लेना अनिवार्य है।
अधिवक्ता ध्रुव वर्मा और रोहन हर्णे ने तर्क दिया कि लोकायुक्त के पास केवल सुपरवीजन का अधिकार होता है। किस मामले में खात्मा लगाना है या फिर चालान पेश करना है, यह अधिकार विशेष पुलिस स्थापना के पास होता है। सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने लोकायुक्त के स्थाई आदेश पर रोक लगा दी। मध्य प्रदेश के कर्मचारियों से संबंधित समाचारों के लिए कृपया Karmchari news MP पर क्लिक करें।