सरकारी अथवा कमजोर नागरिकों की जमीनों पर अक्सर प्रभावशाली और राजनीतिक पकड़ रखने वाले लोग कब्जा कर लेते हैं। वहां पर निर्माण कार्य कर दिए जाते हैं। ऐसे मामलों में सरकार सुनवाई नहीं करती। कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं और कोर्ट की वर्षों लंबी प्रक्रिया के कारण कमजोर नागरिक टूट जाते हैं। सवाल यह है कि क्या इस तरह के मामलों में सिर्फ कोर्ट की लंबी प्रक्रिया ही एकमात्र विकल्प है या फिर कोई दूसरा रास्ता भी है। पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण निर्णय:-
दीपक कुमार मुखर्जी बनाम कोलकाता नगर निगम:-
उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि इमारतों, भवनों एवं अन्य ढाँचों का अवैध तथा अप्राधिकृत निर्माण न केवल नगर विधियों तथा विशेष क्षेत्र के नियोजित विकास की अवधारणा का अतिलंघन करते हैं, इसमे लोगों के विभिन्न मौलिक तथा संवैधानिक अधिकारों को भी प्रभावित करते हैं।
इन अवैध निर्माणों को गिराने के लिए तुरंत कार्यवाही करने में राज्यतंत्र की विफलता के कारण नागरिकों को यह विश्वास हो गया है कि नियोजन विधियां केवल निर्धनों के प्रति लागू की जाती हैं। राज्य सरकार को जहाँ धन से शक्तिमान व्यक्तियों या सत्ता-धारी व्यक्तियों से अपवित्र संबंध रखने वाले व्यक्तियों से व्यवहार करना होता है वहाँ राज्य पूरी तरह समझौता कर लेता है राज्य का यह कार्य असंवैधानिक होता है।
इस निर्णय के अनुसार राज्य सरकार इस प्रकार के अतिक्रमण हटाने के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार है क्योंकि लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा कर रहा है सरकार की जिम्मेदारी है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com