भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विधायिका को कानून बनाने और कार्यपालिका को नियम बनाने एवं आदेश जारी करने के अधिकार मिले हैं। यदि किसी राज्य की विधानसभा अथवा भारत की संसद द्वारा कोई गलत कानून बनाया जाता है या फिर कलेक्टर अथवा पुलिस कमिश्नर द्वारा कोई ऐसा नियम लागू कर दिया जाता है जो भारतीय नागरिक की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है (जिसे तानाशाही कहा जाता है), तब आम नागरिक की रक्षा कौन और किस कानून के तहत की जाएगी। आइए जानते हैं:-
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट: एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य
भारत के संविधान में अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया था कि अनुच्छेद 21 केवल कार्यपालिका के कृत्यों के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है, विधान मंडल के विरुद्ध नहीं। अतएव विधान मण्डल कोई विधि पारित करके किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से वंचित कर सकता हैं।
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट: मेनका गांधी बनाम भारत संघ
किन्तु मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने गोपालन के मामले में दिये अपने निर्णय को उलट दिया और यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 21 केवल कार्यपालिका के कृत्यों के विरूद्ध ही नहीं बल्कि विधायिका के विरुद्ध भी संरक्षण प्रदान करता है। विधान मण्डल द्वारा पारित किसी विधि के अधीन विहित प्रक्रिया, जो किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वाधीनता से वंचित करती हैं, उचित,ऋजु (सत्य) और युक्तियुक्त अर्थात नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के अनुरूप होनी चाहिए। - लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com