कुछ शातिर अपराधी ऐसे होते हैं जो अलग-अलग से क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार के अपराध करते हैं। अलग-अलग थानों में मामले दर्ज होते हैं। ऐसे शातिर अपराधी को यदि एक न्यायालय से सजा हो जाए तब भी दूसरे न्यायालय में पेशी पर जाते समय उसे जेल की कैद से मुक्ति मिलती है और फरार होने का मौका भी। सरकार का पैसा और समय भी नष्ट होता है। क्या ऐसा कोई प्रावधान है कि सारे मामलों की सुनवाई एक ही कोर्ट में हो।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 184 की परिभाषा:-
किसी व्यक्ति पर तीन वर्षों के अंतर्गत बहुत से अपराध को लेकर FIR दर्ज हो जाती है या कुछ लोग मिलकर भारतीय दण्ड संहिता की धारा-34 के अंतर्गत किसी अपराध को साथ मे मिलकर अंजाम दे देते हैं, तब ऐसे मामलों की सुनवाई वह न्यायालय करेगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता में पहले मामला दर्ज होगा एवं अन्य स्थानीयता के मामले भी वही न्यायालय सुनेगा।
उधारानुसार:- 1. अगर कोई व्यक्ति पर सामान्य चोट, गंभीर चोट, गाली-गलौज आदि पर कोई मामला दर्ज होता है यहाँ पर अपराध संज्ञेय एवं असंज्ञेय दोनों प्रकार के हैं तब एक ही न्यायालय इन अपराधों की सुनवाई करेगा।
2. अगर एक व्यक्ति ने अलग अलग स्थानों पर चोरी की है। तीन वर्षों में उस पर अलग अलग धाराओं पर अलग-अलग स्थानीय न्यायालय में परिवाद दायर हैं, तब कोई भी एक न्यायालय उन सभी मामलों को सुनेगा कर सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com