जैसा कि हम जानते हैं कि एमपी टेट वर्ग 3 के सिलेबस में चाइल्ड डेवलपमेंट एंड पेडगॉजी (CDP, Child Development and Pedagogy) में पहला Topic है, बाल विकास की अवधारणा और इसका अधिगम से संबंध। चूँकि हम अपने पिछले आर्टिकल्स में जान चुके हैं कि वृद्धि, परिपक्वता, विकास, अधिगम इन सबका अर्थ क्या है। बाल विकास की अवधारणा को शुरू करने के लिए यह सभी नींव की तरह से काम करेंगे। तो चलिए आज हम बाल विकास की अवधारणा को समझने की कोशिश करते हैं।
बाल विकास का अर्थ - Meaning of Child Developmen
बाल विकास का अर्थ है बालक के विकास की प्रक्रिया, यह तो आप जानते ही हैं कि बालक के विकास की प्रक्रिया जन्म से पूर्व यानी गर्भधारण से ही प्रारंभ हो जाती है और जीवन पर्यंत चलती रहती है या एक ही लाइन में कहें तो विकास, गर्भ से कब्र (Womb to Tomb) चलता ही रहता है। इसी कारण विकास को एक क्रमिक (Successive) और सतत (Continuous) प्रक्रिया कहा जाता है परंतु यदि बच्चे या बालक के संदर्भ में बात करें तो विकास बच्चे को निर्भरता से स्वायत्तता (Dependency To Autonomy) की ओर ले जाता है और कभी भी पीछे की ओर नहीं होता यानी प्रगतिशील परिवर्तन (Progressive changes) ही विकास है।
इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं। जैसे जब बच्चा बहुत छोटा होता है तो वह अपनी सभी क्रियाओं के लिए दूसरों के ऊपर डिपेंड होता है परंतु जब वह धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है तो लगता है तो वह अपना काम खुद करने लग जाता है। यही बाल विकास है। जो की विभिन्न विभिन्न अवस्थाओं के हिसाब से भिन्न-भिन्न होता है।
दूसरा उदाहरण प्रोग्रेसिव चेंज का जैसे बच्चा पहले पेट के बल रेंग रेंग कर चलने की कोशिश करता है, फिर धीरे-धीरे घुटनों पर चलने की कोशिश करता है और उसके बाद वह खड़ा होकर चलने की कोशिश करता है। यानी उसका विकास आगे की ओर हो रहा है। यही प्रोगर्रेसिव चेंज है। यदि कोई बालक जो खड़े होकर चलता है कुछ समय बाद घुटनों के बल चलने लगे और फिर पेट के बल रेंगने लगे तो इसे विकास नहीं बीमारी कहा जाता है।
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