MPTET VARG- 3 प्राथमिक शाला शिक्षक (प्राइमरी स्कूल टीचर्स) के लिए है। जिसमें 5 या 6 वर्ष से 11 या 12 वर्ष तक के बच्चों को पढ़ाना होता है। इसलिए इस अवस्था यानी बाल्यावस्था के बारे में हमें पूरी जानकारी होनी चाहिए परंतु यदि किसी बच्चे को कोई समस्या है तो उसका पता लगाने के लिए हमें उसकी पूर्वावस्था का भी पता होना चाहिए क्योंकि एक अवस्था का प्रभाव दूसरी अवस्था पर अवश्य पड़ता है परंतु बाल विकास के सिद्धांत सभी के लिए एक जैसे हैं। इसलिए शिक्षकों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। इसीलिए किसी भी शिक्षक पात्रता परीक्षा की आवश्यक शर्त होती है, डीएलएड, बीएड, डीएड और भी समकक्ष कोर्स जिसमें शिक्षा मनोविज्ञान, बाल विकास आवश्यक विषय होते हैं।
बाल विकास का सिद्धांत किसे कहते हैं
चूँकि विकास एक बहुत ही जटिल, सतत और व्यापक प्रक्रिया है। विकास कई प्रकार का हो सकता है जैसे- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संज्ञानात्मक ,भाषाई चारित्रिक आदि। परंतु किसी बालक के विकास की प्रक्रिया कुछ सिद्धांतों पर आधारित होती है, इन्हीं को बाल विकास के सिद्धांत कहा जाता है।
शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया ( टीचिंग लर्निंग प्रोसेस) को प्रभावी बनाने के लिए एक शिक्षक को इनका ज्ञान होना अनिवार्य है और जिस आयु वर्ग के बालक बालिकाओं को शिक्षक को पढ़ाना है, उसे उस आयु वर्ग के सामान्य बच्चों के विकास के स्तर का पता जरूर होना चाहिए। तभी वह उनकी समस्याओं का निराकरण कर सकता है।
बाल विकास के सिद्धांत- Principles of Child Development
बाल विकास के सिद्धांत में हम सभी बिंदुओं पर चर्चा करेंगे। निरंतरता का सिद्धांत, विकास क्रम की एकरूपता और वैयक्तिक अंतर का सिद्धांत। यहां समझ में आएगा कि बालक के विकास के सिद्धांत में क्या-क्या प्रमुख होता है।
निरंतरता का सिद्धांत- Principle of Continuity
जैसा कि हम जानते हैं कि हैं कि विकास एक सतत प्रक्रिया है जो कि मां के गर्भ (प्रसवपूर्व अवस्था) में ही प्रारंभ हो जाती है और मृत्यु पर्यंत तक चलती रहती है या कहें कि जो परिवर्तनशील है, जो कभी रुकता नहीं है वही निरंतर है।
विकास क्रम की एकरूपता- Uniformity of Pattern
इस सिद्धांत के अनुसार विकास क्रम एक जाति (Species) के सभी जीवो में एक जैसा ही होता है, चाहे वह किसी भी देश वातावरण में रहे। अगर परिस्थिति सामान्य है तो विकास का क्रम भी सामान्य ही रहेगा। उदाहरण के तौर पर एक बच्चा पहले पेट के बल बल रेंगगा, फिर बैठना सीखेगा। घुटनों के बल चलना सीखेगा, फिर अपने पैरों पर चलना और फिर दौड़ना सीखेगा।
ऐसा कभी नहीं होगा कि पहले बच्चा दौड़ जाए और बाद में बैठना सीखे। यानी गाँव का हो या चाहे शहर का उसका विकास का क्रम एक रुप ही रहेगा। ऐसा कभी नहीं होगा कि गांव का बच्चा धीरे-धीरे विकास करे और शहर का बच्चा तेजी से विकास कर जाए या गांव का बच्चा जल्दी विकास करे और शहर का धीरे, दोनों के विकास के क्रम में एकरूपता रहेगी।
वैयक्तिक अंतर का सिद्धांत- Principle of Individual Differences
विकास क्रम में एकरूपता तो है पर वैयक्तिकका अंतर भी पाया जाता है क्योंकि विकास की गति हर व्यक्ति में अलग अलग होती है। उदाहरण के तौर पर सभी के शरीर में सिर, हाथ, पेट, पैर आदि होते हैं परंतु फिर भी हर एक की बनावट या फिजिक अलग होती है, यही वैयक्तिक अंतर है। जो हर व्यक्ति की अपनी अलग पहचान (Identity) बनाता है। Fingerprint technology और face recognition Technology इसी वैयक्तिक अंतर पर आधारित है। बाल विकास के अन्य सिद्धांत समझने के लिए हम अगले आर्टिकल में जाएंगे।
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