आरक्षण की प्रक्रिया के बाद चुनाव जीतकर आए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के जनप्रतिनिधियों को भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। यदि कोई व्यक्ति इन्हें डरा धमकाकर या लालच देकर कोई काम करवाता है तो ऐसे व्यक्ति को 5 साल जेल की सजा सुनाई जा सकती है।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1) (ड) की परिभाषा:-
वह व्यक्ति जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति का सदस्य नहीं है वह ऐसे वर्ग के व्यक्ति को जो संविधान के भाग 9 के अधीन पंचायत एवं संविधान के भाग 9क के अधीन नगरपालिका-नगरपरिषद का सदस्य (पार्षद, सरपंच, ग्राम प्रधान आदि) या अध्यक्ष पद धारक है। उसे उसके सामान्य कर्तव्यों, कार्यों के रोक डालेगा या कोई लालच देकर जबर्दस्ती कार्य करवाएगा या उसे धमकी देकर किसी भी प्रकार से मजबूर करेगा। तब ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 3(1) (ड) के अंतर्गत दोषी होगा।
सजा का प्रावधान:-
धारा 3(1) (ड) के अपराध का विचारण जिला विशेष न्यायालय द्वारा किया जाएगा, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इस धारा के अपराध के लिए अधिकतम पाँच वर्ष की सजा एवं जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है।
पीड़ित व्यक्ति को राहत राशि
अनुसूचित जाति और जनजाति(अत्याचार निवारण) नियम,1995 नियम 12(4) के अनुसार इस अपराध के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति को राज्य शासन द्वारा पचासी हजार रुपये की आर्थिक सहायता(संदाय) दी जाती है। यह राशि जिला कलेक्टर या SDM या जिला संयोजक अनुसूचित जाति एवं जनजाति कार्यालय द्वारा स्वीकृत होती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com