राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री या लोकसेवक की मानहानि पर न्यायालय कब संज्ञान लेगा जानिए - CrPC section 199

Bhopal Samachar
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अध्याय-21 की धारा 500 से धारा 502 तक मानहानि का अपराध होता है, अर्थात किसी भी व्यक्ति को मान सम्मान को क्षति या ठेस पहुँचना या व्यक्ति पर किसी भी प्रकार का लांछन लगाना मानहानि होती है, लेकिन मानहानि के अपराध का संज्ञान न्यायालय कब और कब नहीं लेगा जानते हैं।

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 199 की परिभाषा:-

1. पीड़ित व्यक्ति के साथ पर अन्य व्यक्ति कब न्यायालय में परिवाद दायर कर सकता हैं:-
• जब पीड़ित व्यक्ति अठारह वर्ष से कम आयु का है।
• जड़ या पागल है बुद्धि का हो।
• रोग या विकलांगता(निःशक्त) के कारण परिवाद दायर करने के असमर्थ हैं।
• या कोई स्त्री किसी प्रथा, रूढ़ियों या रीतियों के अनुसार सामने आने में असमर्थ है।
उपर्युक्त व्यक्ति की और से अन्य कोई व्यक्ति न्यायालय की इजाजत से परिवाद कर सकता है, न्यायालय परिवाद के बाद ही मामले का संज्ञान लेगा अन्यथा नहीं।

2. शासकीय सेवक या राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, केन्द्र या राज्य के मंत्री आदि की मानहानि पर न्यायालय कैसे संज्ञान लेना:-
"अगर भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 21 के अंतर्गत का अपराध भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपाल, केंद्र या राज्य के कोई प्रशासक, केंद्रीय सरकार के मंत्री या राज्य सरकार के मंत्री,केन्द्र या राज्य के कार्यकलापों में नियोजित कोई भी लोकसेवक (शासकीय सेवक) की कोई अन्य व्यक्ति मानहानि करता है तब सत्र न्यायालय लोक-अभियोजक (सरकारी वकील) द्वारा की लिखित परिवाद पर मामले का संज्ञान लेगा अन्यथा नहीं।

लोक अभियोजक परिवाद कब दायर करेगा:-
• अगर कोई व्यक्ति किसी राज्य का राज्यपाल हो या रहा हो, अगर कोई राज्य सरकार का मंत्री हो गया रहा है, या राज्य की कार्यपालिका में नियोजित कोई लोक सेवक हो तब लोक-अभियोजक को राज्य सरकार की मंजूरी की लेना आवश्यक है।

• अगर कोई केंद्र के अधीनस्थ हैं अर्थात राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, केंद्रीय सरकार के शासकीय कर्मचारी की मानहानि हैं तो लोक अभियोजक को केंद्रीय सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है।

नोट:- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 199(5) के अनुसार राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, मंत्रियों या लोकसेवक पर मानहानि के संज्ञान लेने की परिसीमा मानहानि से छः मास के अंदर परिवाद दायर कर सकता है उसके बाद न्यायालय अपराध का संज्ञान नहीं लेगा। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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