जब किसी अपराध की शिकायत मजिस्ट्रेट को प्राप्त होती है तब मजिस्ट्रेट शिकायत को संज्ञान लेने से पहले जाँच करवा सकता है कि शिकायत पंजीबद्घ करने के आधार पर है या नहीं, मजिस्ट्रेट को लगता है कि आरोपी पर लगाए गए आरोपों को साबित करने के कोई ठोस तथ्य या आधार नहीं है तब दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 203 के अंतर्गत शिकायत को खारिज कर सकता है लेकिन अगर शिकायत सही पाई जाती है तब शिकायत सुनने वाले मजिस्ट्रेट का क्या कर्तव्य हो जानते हैं।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 204 की परिभाषा:-
यदि किसी अपराध का संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट की राय में अपराध पर कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तब:-
• मामला असंज्ञेय प्रतीत होता है तो आरोपी को बुलाने के लिए मजिस्ट्रेट समन जारी करेगा।
• अगर मामला संज्ञेय प्रतीत होता है तब मजिस्ट्रेट आरोपी के खिलाफ वारण्ट जारी कर सकता हैं।
लेकिन आरोपी के खिलाफ मजिस्ट्रेट वारण्ट या समन तब तक जारी नहीं करेगा जब परिवाद में साक्षियो की सूची फाइल नहीं कि गई हो।
• शिकायतकर्ता की शिकायत की लिखित कॉपी समन या वारण्ट के साथ आरोपी को भेजी जाएगी।
• अगर परिवाद की कोई फीस न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई है और परिवादी शुल्क नहीं देता है तब मजिस्ट्रेट धारा 204(4) के अंतर्गत परिवाद को खारिज कर सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com