इंदौर। मध्य प्रदेश पुलिस को FIR दर्ज करने के 90 दिन के भीतर जांच पूरी करके चालान पेश करना होता है लेकिन लोकायुक्त पुलिस की रूचि चालान पेश करने में नहीं है। पिछले 1 साल में 35 अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की FIR दर्ज की गई लेकिन चालान पेश नहीं किए गए। शायद यही कारण है कि इंदौर में रिश्वतखोरी कम होने का नाम नहीं ले रही।
लोकायुक्त पुलिस रिश्वतखोरी के मामले में चालान पेश क्यों नहीं करती
हर रोज अखबारों में छपता है, लोकायुक्त पुलिस ने किसी अधिकारी या कर्मचारी को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया। अकेले इंदौर में 1 साल में 35 अधिकारियों एवं कर्मचारियों को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार करने का दावा किया गया। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत FIR दर्ज की गई लेकिन चालान पेश नहीं किया गया।
लोकायुक्त पुलिस की दलील है कि चालान में वॉइस रिकॉर्डिंग के साथ लैब रिपोर्ट लगाना जरूरी होता है। मध्यप्रदेश में आवाज की जांच करने के लिए सिर्फ भोपाल में एक लैब है। वहां से रिपोर्ट नहीं आती इसलिए चालान पेश नहीं किए जाते। कारण कितना सरल है, जिम्मेदार भोपाल की लैब है लेकिन छोटा सा सवाल यह है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि पिछले 2 सालों में दर्ज किए गए 50 मामलों में (इस साल के 35 और पिछले साल के 15), किसी भी प्रकरण की लैब रिपोर्ट नहीं आए।
कितनी अजीब बात है कि जिस प्रदेश में सुगम यातायात के लिए करोड़ों रुपए खर्च करके सड़क और पुल बनाए जाते हैं, जनता को कष्ट ना हो इसलिए कर्ज लेकर विकास किया जा रहा है। उसी प्रदेश में सुगम प्रशासनिक व्यवस्था के लिए, एक लैब नहीं बनाई जा रही है। चार कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की जा रही है। क्यों ना यह आरोप लगाया जाए कि लोकायुक्त पुलिस की रूचि चालान पेश करने में है ही नहीं। यदि लोकायुक्त पुलिस अपील करें तो इंदौर के दानदाता 3 महीने के अंदर नई लैब बना कर दे देंगे। कहीं इसके पीछे कोई दूसरा कारण तो नहीं। इंदौर की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया indore news पर क्लिक करें.