किसी वृत्ति, व्यापार या पेशा के चलाने के लिए सुरक्षित काम का वातावरण होना चाहिए। प्राण के अधिकार का तात्पर्य मानव गरिमा से जीवन जीना है। ऐसी सुरक्षा और गरिमा की सुरक्षा को समुचित कानूनों द्वारा सुनिश्चित कराने तथा लागू करने का प्रमुख दायित्व विधानमंडल और कार्यपालिका का होता है, किन्तु जब कभी न्यायालय के समक्ष अनु. 32 के अधीन महिलाओं यौन उत्पीड़न का मामला लाया जाता है तो उनके मूल अधिकारों की संरक्षा के लिए मार्गदर्शन सिद्धांत विहित करना, जब तक कि समुचित विधान नहीं बनाये जाते उच्चतम न्यायालय का संवैधानिक कर्तव्य हैं कि महिलाओं का यौन उत्पीड़न से संरक्षण करना जानिए सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट।
विशाखा बनाम राजस्थान राज्य:-
उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायधीशों की पीठ ने श्रमजीवी (मजदूरी करने वाली) महिलाओं के प्रति काम के स्थान में होने वाले यौन उत्पीड़न (छेड़छाड़) को रोकने के लिए जब तक कि इस प्रयोजन के लिए विधि नहीं बन जाती हैं, विस्तृत मार्गदर्शन सिद्धान्त विहित किया है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि देश की वर्तमान सिविल विधियां या आपराधिक विधियां काम के स्थान पर महिलाओं के यौन शोषण से बचाने के लिए प्रर्याप्त संरक्षण प्रदान नहीं करती है और इसके लिए विधि बनाने में काफी समय लगेगा। अतः जब तक विधानमंडल समुचित विधि नहीं बनाता है तब तक न्यायालय द्वारा विहित मार्गदर्शक सिद्धांत को लागू किया जायेगा।
न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया है कि प्रत्येक नियोक्ता या अन्य व्यक्तियों या प्रभारी का यह कर्तव्य है कि काम के स्थान या अन्य स्थानों में चाहे प्राइवेट हो या पब्लिक, श्रमजीवी महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए निम्न समुचित उपाय करें:-
1. यौन उत्पीड़न अभिव्यक्त पर रोक लगाना चाहिए जैसे शारीरिक संबंध और प्रस्ताव, यौन संबंध के लिए मांग या प्रार्थना करना, अश्लील बाते एवं साहित्य संबंधित कार्य न करने देना। अगर कोई व्यक्ति ऐसा अपकृत्य करता है एवं नियमो का पालन नहीं करता है तब दोषी व्यक्तियों के लिए समुचित दण्ड का प्रावधान किया जाना चाहिए।
2. महिलाओं को काम, आराम, स्वास्थ्य ओर स्वास्थ्य विज्ञान के संबंध में समुचित परिस्थितियों का प्रावधान होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महिलाओं को काम के स्थान में कोई विद्देषपूर्ण वातावरण न ही न उनके मन में ऐसा विश्वास करने का कारण हो कि वह नियोजन आदि के मामले में अलाभकारी स्थिति में है।
3. जहाँ कोई ऐसा आचरण भारतीय दण्ड संहिता या किसी अन्य विधि के अधीन विशिष्ट अपराध होता हो तो नियोक्ता को विधि के अनुसार उसके विरुद्ध समुचित प्राधिकारी को शिकायत करके समुचित कार्यवाही प्रारंभ करना चाहिए। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com