दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-197 कहती है कि किसी लोकसेवक पर वाद दायर करने से पूर्व सरकार की स्वीकृति लेना आवश्यक होता है, इसी प्रकार भष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 19 भी लोकसेवक पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने से पहले संस्वीकृति की बात करती है। लेकिन क्या बिना स्वीकृति के भ्रष्टाचार करने वाले लोकसेवक पर न्यायालय में वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है इस संबंध में जानिए सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट क्या कहता हैं।
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट: सुब्रमनियन स्वामी बनाम मनमोहन सिंह
मामले में उच्चतम न्यायालय ने दो न्यायधीशों की न्यायपीठ द्वारा यह अभिनिर्धारित किया कि एक भ्रष्ट लोकसेवक के विरुद्ध प्राइवेट नागरिक का परिवाद दाखिल करने का अधिकार आपराधिक विधि को गतिमान करने के लिए न्यायालय तक पहुंच के अधिकार के तुल्य है जिसे किसी बन्धनों के अधीन नहीं होना चाहिए।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 जिसमें स्वीकृति का प्रावधान है समता के प्रावधान के प्रतिकूल हैं एवं संरक्षणीय भेदभाव की प्रकृति के है किन्तु स्वीकृति देने में समय सीमा की अनुपस्थिति विधि की सम्यक प्रक्रिया के अनुरूप नहीं है एवं विधि के शासन का स्पष्ट विनाश हैं।
संसद तथा समुचित प्राधिकारी को प्रक्रिया संहिता एवं धारा 19 को ठीक करने के लिए अवश्य विचार करना चाहिए जिससे कि वह युक्ति, न्याय तथा निष्पक्षता के अनुरूप हो सके। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com