काशी को महादेव का पवित्र नगर कहा जाता है। उस कालखंड में उज्जैन इतना प्रसिद्ध नहीं था। शिव भक्तों की तीर्थ यात्रा तो दूर की बात, स्थानीय नागरिक में उज्जैन से पलायन कर रहे थे। ऐसे समय में महर्षि सांदीपनि ने उज्जैन शहर में आश्रम की स्थापना की। आइए पढ़ते हैं कि क्या कारण थे जो महर्षि सांदीपनि महादेव के नगर काशी को छोड़कर उज्जैन आए:-
लोगों ने संदीपनी ऋषि को बताया कि उज्जैनी नगर में त्राहि-त्राहि मची हुई है। अकाल पड़ा हुआ है। लोग बीमारी से मर रहे हैं, तो संदीपनी ऋषि ने लोगों को आश्वासन दिया, कि सब ठीक हो जाएगा और वह भगवान शिव की तपस्या करने लगे और भगवान शिव प्रसन्न होकर संदीपनी ऋषि के सामने प्रकट हुए। उन्होंने वरदान मांगने के लिए कहा- संदीपनी ऋषि ने वरदान में मांगा की उज्जैन की सारी समस्याएं समाप्त हो जाए और भगवान शिव ने कहा कि जब तक मै उज्जैन में निवास करुँगा। तब तक उज्जैन में किसी भी तरह की समस्याएं नहीं होगी।
भगवान शिव ने उन्हें एक और वरदान मांगने के लिए कहा- उन्होंने अपने मृत पुत्र को वरदान में मांगा। भगवान शिव ने कहा कि द्वापर युग में आपके पास दो शिष्य शिक्षा ग्रहण करने के लिए आएंगे। आप गुरु दक्षिणा में उनसे अपने पुत्र को मांगना। यही कारण रहा कि ऋषि संदीपनी ने उज्जैन में आश्रम बनाया और यहीं रुक गए। द्वापर युग में श्री कृष्ण जी अपने प्रिय मित्र सुदामा के साथ ऋषि संदीपनी जी के यहां पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए आए और शिक्षा पूरी होने के बाद, संदीपनी ऋषि को गुरूदक्षिणा के समय उनका पुत्र लौटा दिया।
Moral of the story
अत्यधिक पीड़ा एवं शोक के समय में जन कल्याण के कार्य ही जीवन को फिर से सामान्य बनाने में सक्षम होते हैं। यदि आप लोक कल्याण के कार्य करते हैं तो ईश्वर प्रसन्न होते हैं और आपके जीवन में चमत्कार के अनुभव होते हैं।