शक्ति रावत। हम सब जीवन में सोचते हैं, अगर ऐसा हो जाए तो अगर वैसा हो जाए तो चीजें मेरे हिसाब से हो जाए तो। लेकिन सच में अगर सबकुछ हमारे मन के हिसाब से हो जाए तो क्या होगा। जानिये इस छोटी सी मोटीवेशल कहानी से।
कहानी- एक किसान को परमात्मा से शिकायत थी कि भगवान की वजह से उसकी फसल उसके मन मुताबिक नहीं हो पाती, क्योंकि कभी बारिश, कभी तूफान कभी धूप उसकी मेहनत से बोई फसल को खराब कर देते हैं। उसने अपनी यह शिकायत ईश्वर तक पहुंचाई तो भगवान ने कहा कि ठीक है, इस बार मैं तुम्हें अपनी मर्जी मुताबिक फसल उगाने की छूट देता हूं, इस बार सारे मौसम तुम्हारे हिसाब से चलेंगे, जब तुम धूप चाहो तब धूप और जब बारिश चाहो तो बारिश।
किसान बहुत खुश था, उसने अपने खेतों में गेंहू बोए और सबकुछ यानि धूप, बारिश सबकुछ अपने हिसाब से रखा, जितना जो चाहिये उतना ही दिया। इस बार गेंहू की बालियां भी पहले के मुकाबले बड़ी थीं, किसान खुश था, लेकिन जब वह फसल काटने पहुंचा तो गेंहू की बालियों को हाथ में लेते ही जोर-जोर से रोने लगा। क्योंकि बालियां तो बहुत बड़ी थीं, लेकिन उनके अंदर दाने नहीं थे, सब खालीं थीं।
किसान ने फिर भगवान से कहा कि यह क्या हुआ। भगवान ने कहा कि सबकुछ तुम्हारे हिसाब से तो था, नतीजा तुम्हारे सामने है। तुमने अपनी फसल को ना तो धूप से जूझने दिया, ना आंधी-तूफान और बारिश से, ना उनको कोई संघर्ष करने दिया। तुमने कुदरद को उन्हें पालने का मौका ही नहीं दिया। यही वजह है कि बालियां देखेने में तो बहुत अच्छीं हुई लेकिन खाली रह गई हैं।
MORAL OF THE STORY
हम सब की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। हम सब चाहते हैं, कि अगर ईश्वर सब हमारे हिसाब से कर दे तो हम बहुत कुछ करके दिखा सकते हैं, लेेकिन जब तक आप जीवन के तूफानों और समस्याओं में तपेंगे नहीं तब तक आप जीवन के विजेता नहीं बन सकते। संघर्ष के जरिये ही जीवन बनता है, और सफलता मिलती है, अगर ईश्वर सबकुछ आपके हिसाब से कर दे तो आप भी गेंहू की वालियों की तरह खाली रह जाएंगे। शायद इसीलिये कहा जाता है, कि मन का हो तो अच्छा लेकिन अगर मन का ना हो तो ज्यादा अच्छा। - लेखक मोटीवेशल एंव लाइफ मैनेजमेंट स्पीकर हैं।