जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रिटायर्ड डीएसपी अशोक राणा विरुद्ध मध्यप्रदेश शासन मामले में डिसीजन देते हुए कहा कि जब तक किसी कर्मचारी का कदाचरण साबित नहीं हो जाता तब तक डिपार्टमेंट की तरफ से उसे दंडित नहीं किया जा सकता। मध्य प्रदेश गृह विभाग पुलिस डिपार्टमेंट द्वारा डीएसपी को विभागीय जांच में कदाचरण का दोषी मानते हुए पेंशन में 10% की कटौती कर दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीइ ने राज्य सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया है जिसमें राणा के पक्ष में पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। फरवरी 2014 में अशोक राणा अजाक थाना कटनी में पदस्थ थे। बीमार होने पर उन्होंने छुट्टी का आवेदन दिया जिसे डिपार्टमेंट द्वारा स्वीकार कर लिया गया। स्वास्थ्य लाभ नहीं मिलने पर उन्होंने मेडिकल सर्टिफिकेट सहित डाक के माध्यम से विभाग के पास छुट्टी बढ़ाने का आवेदन भेजा, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें बिना अनुमति अनुपस्थित मानकर कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई।
जांच पूरी होने से पहले जनवरी, 2017 में डीएसपी अशोक राणा रिटायर हो गए। विभागीय जांच के कारण गृह मंत्रालय ने स्थाई रूप से 10 फीसद पेंशन कम करने का आदेश जारी कर दिया। राणा ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले पर सुनवाई के बाद कोर्ट कहा कि जब अनाधिकृत रूप से कार्य से अनुपस्थित का आरोप लगता है तो अधिकारियों को यह साबित करना जरूरी है कि अनुपस्थिति जानबूझकर की गई है।
कोर्ट ने कहा कि जांच समिति की रिपोर्ट में भी यह साबित नहीं हुआ कि डीएसपी जानबूझकर ड्यूटी से अनुपस्थित रहे, इसलिए यह मामला कदाचरण का नहीं बनता। कर्मचारी को तभी सजा दी जानी चाहिए जब उसके खिलाफ कदाचरण साबित हो जाए। एकलपीठ ने उस आदेश को निरस्त कर दिया था, जिसमें 10 फीसदी पेंशन कम करने कहा गया था।
एकल पीठ के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में अपील पेश की थी।इस मामले पर सुनवाई के बाद युगलपीठ ने एकलपीठ के आदेश को सही ठहराते हुए सरकार की अपील खारिज कर दी। मध्यप्रदेश कर्मचारियों से संबंधित महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया MP karmchari news पर क्या करें.