Personality and its Measurement- Part-2
जैसा कि हमने अपने पिछले आर्टिकल से जाना कि व्यक्तित्व अपने आप में विशिष्ट या यूनिक होता है। इसके साथ ही व्यक्तित्व अपने आप में गतिशील ( Dynemic) भी होता है। यानी यह समय के अनुसार अपना रूप बदलता रहता है। जैसे हमारा घर में हमारा व्यवहार अलग होता है, जबकि बाहर हमारा व्यवहार अलग होता है। किसी दोस्त के साथ हमारा व्यवहार अलग होता है, किसी रिश्तेदार के साथ हमारा व्यवहार अलग होता है। बहुत समय के बाद प्रभावी लक्षण (Traits) ऊपर आ जाते हैं और अप्रभावी लक्षण दब जाते हैं या नीचे चले जाते हैं। जबकि कुछ ऐसे Central traits होते हैं जो कभी नहीं बदलते।
सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) जो की एक नोविश्लेषणवादी (Psychoanalytics) हैं, उनके अनुसार हमारे व्यक्तित्व के तीन प्रमुख पार्ट्स या भाग होते हैं जो कि हमारी पर्सनालिटी या व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं। इद (ID), Ego (अहम्), Superego (पराअहम्)
इद (ID) - इद एक बच्चे के जन्म के साथ ही शुरू होता है, जो की प्रसन्नता सिद्धांत (pleasure principle) से जुड़ा होता है। इसे सच झूठ से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसे बस अपनी इच्छाओं की पूर्ति हर हाल में करनी होती है। इसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके कुछ भी करने से किसी दूसरे को क्या फर्क पड़ेगा। साधारण भाषा में इसे जिद् भी कह सकते हैं।
अहम् (Ego) - यह भी जन्म के बाद ही शुरू होती है परंतु यह यथार्थ सिद्धांत (Reality principle) पर काम करती है। यह प्रैक्टिकल है और एक रैफरी की तरह या पुलिसमैन की तरह से काम करता है, जो कि एक बीच का सही रास्ता ढूंढता है। इसे सेफ्टी या कहें तो भविष्य की चिंता होती है। किसी काम को करने से क्या फायदा होगा, क्या नुकसान होगा यह अहं का ही हिस्सा है।
पराअहम् (Superego) - यह पूरी तरह से नैतिकता (Morality) पर आधारित होती हैं। इसके अपने कुछ normes, values होते हैं जो ये कभी नहीं छोड़ने देती। चाहे कुछ भी हो जाए सच बोलना है तो सच ही बोलना है।
अहम रक्षा तंत्र (Ego Defence Mechanism)
चूँकि अहम् सही गलत में फर्क जानता है, इसीलिए वह अपने आप की रक्षा के लिए कुछ तरीके अपनाता है, जिन्हें Ego Defence Mechanism कहा जाता है। इसे करने के कई तरीके हैं।
दमन (Reprression) :- अपनी इच्छाओं को दबा देना दमन या रिप्रेशन कहलाता है परंतु कई बार इसके कारण डिप्रैशन या एंजायटी भी हो जाती है।
बदला (Regrresion) :- कभी अपने से छोटे के जैसा बर्ताव करने लगना, सामान उठाकर यहां, वहां फेंक देना, बदला या रिग्रेशन कहलाता है।
Rationalisation :- कभी बहाने बनाना या तर्क देना,रेशनेलाइजेशन कहलाता है।
Sublimation :- अपनी नेगेटिव एनर्जी को किसी दूसरी ओर पॉजिटिव काम में लगा देना, यह सब्लीमेशन कहलाता है।
Displacement :- कभी किसी और के कारण गुस्सा आ रहा है, परंतु किसी दूसरे पर उस गुस्से को निकाल देना जो कि आपको मालूम है कि वह आपके लिए सेफ जोन है, डिस्प्लेसमेंट कहलाता है। जिसे बलि का बकरा बनाना (Scapegotism) भो कहते हैं।
Humour :- कभी हंसी मजाक में बात को टाल देना।
Identification :- कभी अपनी फैलियर को छुपाने के लिए, किसी फेमस सेलिब्रिटी के साथ कांटेक्ट बताना।
Fantacy :- Fantasy world में रहना, Day Dreaming आदि के माध्यम से अपने आप को बैलेंस में रखना।
ये सभी Ego defence Mechanism कहलाती हैं।
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