किसी भी अपराध के बाद पुलिस FIR दर्ज करके इन्वेस्टिगेशन करती है और फिर चालान पेश करती है। आरोप पत्र में पुलिस दावा करती है कि उसकी जांच में अपराध होना और उसमें आरोपी की संलिप्तता पाई गई है। यदि FIR में एक से अधिक धाराएं लगाई गई हैं और कोर्ट में ट्रायल के दौरान साबित होता है कि पुलिस ने 10 में से 9 धाराएं गलत लगा दी है, तब क्या पुलिस की पूरी इन्वेस्टिगेशन को गलत मानते हुए खारिज कर दिया जाएगा। आरोपी को दोषमुक्त कर दिया जाएगा। आइए जानते हैं:-
उदाहरण से समझिए
पुलिस ने किसी व्यक्ति को पकड़कर कोर्ट के सामने पेश किया और अपने आरोपपत्र में दावा किया कि संबंधित व्यक्ति ने चोरी की है। रात्रि गृह भेदन (धारा 445) और गृह अतिचार (धारा 442) किया है। कोर्ट में ट्रायल के दौरान यह साबित हो जाता है कि आरोपी ने चोरी नहीं की लेकिन रात्रि के समय बिना आधिकारिक अनुमति के घर में प्रवेश किया था। तब क्या आरोपी को दोषमुक्त कर दिया जाएगा, क्योंकि उस पर चोरी का आरोप साबित नहीं हो पाया या फिर बिना आधिकारिक अनुमति के घर में प्रवेश करने पर दंडित किया जाएगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 222 की परिभाषा (संक्षिप्त एवं सरल शब्दों में):-
• जब किसी व्यक्ति पर भारतीय दण्ड संहिता या अन्य विधि के अंतर्गत एक से अधिक धाराओं पर अपराध का आरोप लगाया गया हो एवं न्यायालय द्वारा या साक्ष्यों के अभाव में यह साबित नहीं हो पा रहा हैं कि आरोपी ने कोई बड़ा अपराध किया है एवं ऐसे में आरोपी व्यक्ति यह साबित कर दे कि उसने बड़े नहीं छोटे अपराध को अंजाम दिया है एवं बड़ा अपराध उस पर जबरदस्ती लगाया गया है तब न्यायालय आरोपित आरोपों में से आरोपी को छोटे अपराध के दण्ड से दण्डित करेगा।
नोट:- ध्यान रहे यहाँ पर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 221 आरोप में नहीं लगाई गई धारा के लिए आरोपी व्यक्ति को दण्डित करती है एवं धारा 222 आरोपित(लगे हुए) आरोपो के अपराध के छोटे अपराध से दण्डित करती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com