ग्वालियर। ग्वालियर शहर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल जनक ताल को बेचने की तैयारी की जा रही थी। जालसाजों ने 13 साल पहले (सन 2008) से इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। सरकारी रिकॉर्ड में सरकारी पर्यटक स्थल को प्राइवेट प्रॉपर्टी बता दिया गया था। ग्वालियर कलेक्टर को जैसे ही इस सऊदी की भनक लगी, उन्होंने आनन-फानन रिकॉर्ड निकलवाया और जनकताल को फिर से सरकारी प्रॉपर्टी लिस्ट कर लिया गया।
जनकताल और उससे लगी सरकारी जमीन को भू-माफिया बेचने की तैयारी कर रहे थे। इसी बीच एक गोपनीय शिकायत के जरिए कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह को इस मामले की जानकारी लग गई। आनन-फानन में कलेक्टर ने शुक्रवार को एडीएम इच्छित गढ़पाले और एसडीएम ग्वालियर सिटी प्रदीप तोमर को बुलाकर इस जमीन को फिर से खसरों में शासकीय दर्ज करने के निर्देश जारी किए।
2007 तक बंदोबस्त व खसरे में शासकीय दर्ज थी जमीन
कलेक्टर ने जब इस मामले से जुड़े सरकारी रिकॉर्ड को खंगाला तो मालूम चला कि मिसिल बंदोबस्त से लेकर सरकारी खसरों तक में वर्ष 2007 तक यह जमीन शासकीय जमीन के तौर पर दर्ज थी, लेकिन वर्ष 2008 में बहोड़ापुर क्षेत्र के राजस्व अफसरों ने प्रमुख पर्यटन स्थल वाली जमीन को अलग-अलग स्याही और हैंड राइटिंग के जरिए खसरों में प्राइवेट लोगों के नाम चढ़ा दी। बहोड़ापुर सर्किल की इस जमीन का सर्वे नंबर 18 है और रकबा कुल 10 बीघा है। इसकी वर्तमान कलेक्टर गाइडलाइन ही 7 करोड़ रुपए है।
सुसेरा कोठी की 6 बीघा जमीन भी सरकारी घोषित
पुरानी छावनी के पास स्थित ग्राम सुसेरा कोठी के सर्वे नंबर 243 की 6 बीघा जमीन भी कूटरचित तरीके से राजस्व अमले ने ही खसरे में कुछ लोगों के नाम चढ़ा दी थी। एसडीएम के अनुसार यह जमीन वन भूमि है। इसकी कीमत कलेक्टर गाइडलाइन के हिसाब से 3 करोड़ रुपए आंकी गई है। इस जमीन को भी कलेक्टर ने शासकीय दर्ज करने के निर्देश एसडीएम प्रदीप तोमर को दिए हैं।
दोषियों पर कार्रवाई करेंगे
एक शिकायत से हमें मालूम चला कि भू-माफियाओं ने जनकताल और उससे लगी जमीन को अपने नाम खसरों में दर्ज करवा लिया। मैंने मामले की पड़ताल कराई और जमीन को शासकीय दर्ज करने के निर्देश दिए हैं। कमूेटी से जांच कराकर दोषियों पर कार्रवाई करेंगे।-कौशलेंद्र विक्रम सिंह, कलेक्टर. ग्वालियर की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया GWALIOR NEWS पर क्लिक करें.