भोपाल। बीमा कंपनियों के आवेदन फॉर्म में इस चर्च का उल्लेख नहीं है कि यदि आपने पहले से किसी दूसरी कंपनी में बीमा कराया है तो हम क्लेम नहीं देंगे लेकिन मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में संचालित उपभोक्ता फोरम का कहना है कि एक फसल का दो कंपनियों में बीमा कराना, ठगी अथवा धोखाधड़ी जैसा गंभीर अपराध है। फोरम ने किसान के क्लेम को खारिज कर दिया।
मुलताई तहसील के ग्राम चिखलीकलां के किसान सर्वेलाल पिता गोकुलसिंह रघुवंशी के द्वारा अपनी 6.026 हेक्टेयर कृषि भूमि पर स्टेट बैंक आफ इंडिया, शाखा मुलताई से वर्ष 2017 में खरीफ मौसम में सोयाबीन की फसल हेतु किसान क्रेडिट कार्ड पर कर्ज लिया था। बैंक ने 14 सितंबर 2017 को बीमा प्रीमियम राशि 4,146 रुपये काटकर बीमा कंपनी को भुगतान कर, राष्ट्रीय (प्रधानमंत्री) कृषि फसल बीमा योजना के अंतर्गत सोयाबीन की फसल का बीमा कराया था। वर्ष 2017 के खरीफ मौसम में परिवादी की सोयाबीन की फसल प्राकृतिक आपदा के कारण बर्बाद हो गई।
शासन द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार पटवारी हल्का नंबर-68, ग्राम चिखलीकलां, तहसील मुलताई, जिला बैतूल की सोयाबीन की फसल के उत्पादन में 62 प्रतिशत कमी अर्थात 62 प्रतिशत क्षति हुई। इस आधार पर सर्वेलाल को एक लाख 28 हजार 522 रुपये बीमा दावा राशि प्राप्त होना था। इसके बदले में उसे केवल 49,187 रुपये क्षतिपूर्ति राशि का ही भुगतान किया गया। इस पर किसान ने 79,355 रुपये अंतर की क्षतिपूर्ति राशि ब्याज सहित प्रदान कराने के लिए परिवाद दायर किया।
मामले की सुनवाई के दौरान उपभोक्ता आयोग ने स्वप्रेरणा से यह जांच कराई कि कहीं किसान ने किसी दूसरी कंपनी से तो बीमा नहीं करा लिया था। जांच के दौरान पाया गया कि प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति मर्यादित, चिखलीकलां से भी ऋण लिया गया था। लोन देते समय नियमानुसार सहकारी समिति ने भी फसल का बीमा प्रीमियम काट लिया था। यह भी पाया गया कि सहकारी समिति द्वारा कराए गए बीमा से किसान द्वारा क्लेम प्राप्त किया गया है।
आयोग के अध्यक्ष बिपिन बिहारी शुक्ला एवं सदस्य अजय श्रीवास्तव ने अपने आदेश में कहा है कि किसान ने एक ही अधिसूचित क्षेत्र की अधिसूचित फसल का बीमा दो भिन्न-भिन्न वित्तीय संस्थाओं से कराया है। उक्त कृत्य निःसंदेह छल जैसे अपराध की श्रेणी में आता है। इसके अतिरिक्त यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी ने उक्त सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य का उल्लेख अपने परिवाद में नहीं किया है और उसे छुपाया है। फलस्वरूप यह कहा जा सकता है कि परिवादी ने सद्भाविक रूप से परिवाद प्रस्तुत नहीं किया है। परिवादी स्वच्छ हस्त से इस जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष नहीं आया है। अतः केवल इसी आधार पर परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है। मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया mp news पर क्लिक करें.