जबलपुर। शहडोल जिला न्यायालय में 15 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चल रही है हत्या के मामले की सुनवाई के बीच मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल को गलत बताते हुए निरस्त कर दिया। उच्च न्यायालय ने माना कि अभियोजन की स्वीकृति के बिना मुकदमा नहीं चला सकते। शासकीय कर्मचारियों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत सुरक्षा दी गई है। यह आदेश न्यायमूर्ति श्री संजय द्विवेदी ने दिया।
पढ़िए मामला क्या है:
29 नवंबर 2006 को राजकुमार उर्फ छोटा गुड्डा अपने मित्र भूपेन्द्र शर्मा के साथ शहडोल की मुडना नदी पार कर रहे थे, तभी पुलिस अधिकारी चंदेल के इशारे पर पुलिस कर्मियों ने उस पर फायर किया। राजकुमार घायल हो गया और बाद में उसकी मौत हो गई। मृतक की मां ने इसे फर्जी एनकाउंटर बताते हुए कोर्ट में प्रकरण प्रस्तुत किया।
मजिस्ट्रियल जांच में यह बात सामने आई कि राजकुमार को हत्या के एक प्रकरण में सजा मिली थी। वह पैरोल पर था। घटना के समय वह फरार घोषित था। मुखबिर से पुलिस को उसके ठिकाने की सूचना मिली और वे घटनास्थल पर पहुंचे। पुलिस ने उससे सरेंडर करने कहा तो उसने जवाब में फायर किया। क्रास फायरिंग में उसे गोली लगी। पुलिस को घटनास्थल से रिवाल्वर सहित बहुत सा असला भी मिला था।
रोहतक राजकुमार की माने शहडोल जिला न्यायालय में सन 2012 में फर्जी एनकाउंटर का दावा करते हुए घटनास्थल पर मौजूद 15 पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने का निवेदन किया। शहडोल जिला न्यायालय ने इस शिकायत के आधार पर सभी 15 पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 के तहत आरोप तय करके ट्रायल शुरू कर दिया।
निचली अदालत के फैसले के खिलाफ एसएचओ जेबीएस चंदेल, स्वतंत्र सिंह, अरविंद दुबे, महेश यादव समेत 15 पुलिस कर्मियों ने हाई कोर्ट में अपील पेश की थी। अपीलार्थियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने दलील दी के इस मामले में मजिस्ट्रेट जांच व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में भी पुलिस कर्मियों को निर्दोष बताया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए दलील दी कि ऐसे मामलों में जनसेवक पुलिस कर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले अभियोजन स्वीकृति आवश्यक है। मध्यप्रदेश कर्मचारियों से संबंधित महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया MP karmchari news पर क्लिक करें.