महिला से उत्पीड़न के मामले में अक्सर देखा जाता है कि आरोपी व्यक्ति, पीड़ित महिलाओं के चरित्र या उसके आचरण को गलत बता कर बचने की कोशिश करता है लेकिन बलात्कार से बढ़ते मामलों को देखते हुए वर्ष 2013 के संशोधन द्वारा भारतीय दण्ड संहिता एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम के कुछ परिवर्तन किए गए। एवं साक्ष्य अधिनियम, 1872 में एक नई धारा 53(क) जोड़ी गई है, जो स्त्री के पूर्व के गलत लैंगिक संबंध को महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं मानती है।
साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 53(क) की परिभाषा:-
अगर किसी व्यक्ति पर स्त्री द्वारा लज्जा भंग अर्थात भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 (क, ख, ग, घ,) एवं बलात्कार से सम्बंधित धारा 376 (क, ख, ग, घ, ड, कख, घक, घख,) के अंतर्गत आरोप लगाया गया है तब अरोपी या उसके वकील द्वारा उसके पूर्व के चाल चलन, चरित्र, आचरण के बारे में किसी प्रकार का साक्ष्य देना सुसंगत (न्यायोचित) नहीं होगा, अर्थात आरोपी या वकील यह दलील नहीं दे सकता है कि यह स्त्री खराब चाल चलन की है।
इस धारा का उद्देश्य यह भी हैं कि कभी-कभी महिलाएं बलात्संग की शिकायत करने पुलिस थाने जाती है तो कुछ भ्रष्ट अधिकारी उन्हें यह कहकर भगा देते हैं कि तुम्हारा चाल चलन पहले से ही ठीक नहीं है। न्यायालय तुम्हें ही गलत मनेगा। महिलाएं कानून की जानकारी के अभाव में शिकायत दर्ज नहीं करवाती है। अत यह घोषित किया गया कि न्यायालय किसी बालात्कार या लज्जा भंग के अपराध में महिलाओं के पूर्व के चरित्र को नहीं देखता है।
:- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com