भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार और सरकारी कर्मचारी दो महत्वपूर्ण लेकिन अलग-अलग अंग होते हैं। सरकार योजनाएं बनाती है और सरकारी कर्मचारी की जिम्मेदारी होती है कि वह हितग्राहियों तक योजना का लाभ पहुंचाएं। यदि किसी सरकारी कर्मचारी अथवा अधिकारी की लापरवाही के कारण योजना का लाभ आम नागरिक तक नहीं पहुंच पाता है तो ऐसा व्यक्ति जो योजना के लाभ से वंचित रह गया है, ना केवल योजना का लाभ प्राप्त करने का अधिकारी है बल्कि देरी के लिए मुआवजा प्राप्त करना भी उसका अधिकार है। पढ़िए सुप्रीम का महत्वपूर्ण जजमेंट।
लखनऊ विकास प्राधिकारी बनाम ए.के. गुप्ता
उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों ने यह अभिनिर्धारित किया कि यदि राज्य द्वारा या उसके सेवको द्वारा मनमाने ढंग से कार्य करने से किसी आम नागरिक को कोई हानि पहुँचती है तो राज्य स्वयं उस नुकसानी देने के लिए दायी होगा।
लोक प्राधिकारीगण जो संविधान या किसी अधिनियमित के नियमों का उल्लंघन करते हुए कोई अन्यायपूर्ण कार्य करते है तो वे ऐसे आचरण के लिए कानून द्वारा सृजित प्राधिकारी जैसे आयोग या न्यायालय के प्रति जो विधि शासन को बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है, उसके उत्तरदायी होते हैं।
ऐसे मामले में राज्य के दायित्व के निर्धारण करने के लिए यह देखना आवश्यक नहीं है कि सम्प्रभु कार्य तथा व्यापारिक कार्य में क्या अंतर है। न्यायालय ने कहा कि हमारे संविधान में संप्रभुता जनता में निहित है। अतः शासन तंत्र के हर अंग को लोकोन्मुख होकर अपना कार्य करना चाहिए। उन्हें उसी सीमा तक विमुक्ति प्राप्त है जितना कि कानून में विहित हैं। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com