दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 के अंतर्गत गिरफ्तारी से पहले जमानत प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि कभी-कभी किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा व आत्म-सम्मान को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से फर्जी आपराधिक मामलों में फंसाने के प्रयास किए जाते हैं। ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्ति के फरार हो जाने अथवा न्यायालय के आदेश की अवहेलना किये जाने का संदेह भी नहीं होता है, ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता हैं कि उस व्यक्ति को गिरफ्तारी से पूर्व ही अग्रिम जमानत दे दी जाए।
"दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438(1) के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसे अजमानतीय अपराध के मामले में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह व्यक्ति क्षेत्र के उच्च न्यायालय या जिला सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत हेतु आवेदन कर सकता है। न्यायालय निम्न शर्तो के अधीन जमानत मंजूर कर सकता है:-
अग्रिम जमानत की शर्तें
1. आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति पुलिस अधिकारी के समक्ष पूछताछ के लिए उपस्थित होगा।
2. आरोपी व्यक्ति किसी भी प्रकार से पीड़ित व्यक्ति को उत्प्रेरित नहीं करेगा।
3. न्यायालय की अनुमति के बगैर भारत या क्षेत्र को नहीं छोड़ेगा।
नोट:- वे राज्य जिनमें अग्रिम जमानत स्वीकृतियां किये जाने का प्रावधान नहीं है वहाँ उच्च न्यायालय व जिला सत्र न्यायालय गिरफ्तारी से पूर्व जमानत स्वीकृत नहीं कर सकते है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com