कभी-कभी राज्य सरकार या उससे अभिकरण, कोई कार्यसंचालक द्वारा ऐसे नियम किसी संविदा, किसी लाइसेंस या कोई लोक-संपत्ति की नीलामी या उपयोग करने के लिए पहले आओ, पहले पाओ के नियम बना दिये जाते हैं जिससे कारण कभी-कभी योग्य उम्मीदवार को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। क्या सरकार द्वारा आर्थिक नीति को सुधारने के लिए बनाया गया ऐसा नियम वैध होगा या अवैध जानिए।
सेण्टर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन बनाम भारत संघ
उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि संविदा दिये जाने या लाइसेंस स्वीकृति करने या लोक संपत्ति के उपयोग करने के लिए अनुमति दिये जाने के मामले में जो पहले आये उसकी सेवा पहले करने की नीति का अवलम्ब लेना खतरनाक है, जो कि अंतर्निहित व विवक्षित हैं। प्राकृतिक संसाधनों को अंतरित करने या संक्रमित करने में राज्य इस कर्तव्य के अधीन हैं कि वह व्यापक प्रचार देते हुये नीलामी का ढंग अपनाये जिसमे कि सभी योग्य व्यक्ति प्रकिया में सम्मिलित हो सके।
न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायालय को राज्य की आर्थिक नीतियों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए लेकिन जब वह स्पष्ट है कि राज्य या इसके अभिकरण/कार्यसंचालक द्वारा बनायी गयी नीति या इसे लागू किया जाना लोकहित के प्रतिकूल है या संवैधानिक सिद्धान्तों के प्रतिकूल हैं तो न्यायालय का कर्त्तव्य है कि वह अपनी अधिकारिता का इस्तेमाल व्यापक लोकहित में करे और राज्य के इस अभिवचन (वाद-पत्र) को खारिज कर दे कि न्यायिक पुनर्विचार का क्षेत्र मान्य प्राचलों से बाहर न जाने पाये।
न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संस्थागत निष्ठा के साथ उन लोगों को समझौता न करना चाहिए जिनमें लोगों ने व्यापक विश्वास व्यक्त किया है और जिन्होंने यह शपथ लिया है कि वे भय या पक्षपात,प्रेम या दुर्भावरहित होकर संविधान तथा विधि के अनुसार कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे और साथ-साथ अनुच्छेद 51-क में उल्लिखित कर्तव्यों का पालन करने के लिये बाध्य हैं। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com