जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार से सवाल किया है कि शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति में आरक्षण नियमों का पालन क्यों नहीं किया जाता। उच्च न्यायालय ने शासन को जवाब प्रस्तुत करने के लिए अंतिम अवसर दिया है। यही सवाल इससे पहले चार बार पूछा जा चुका है लेकिन सरकार ने कोर्ट में अपना जवाब पेश नहीं किया।
अधिवक्ताओं की नियुक्ति में आरक्षण विवाद पर सरकार चुप
न्यायमूर्ति एसए धर्माधिकारी की एकलपीठ ने एक वर्ष से जवाब प्रस्तुत न किए जाने के रवैये को आड़े हाथों लेते हुए राज्य शासन को हर हाल में जवाब पेश करने के निर्देश दिए। अगली सुनवाई 15 फरवरी को निर्धारित की गई है। याचिकाकर्ता ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि पूर्व में इसी मुद्दे को लेकर एक अन्य याचिका दायर की गई थी। जिस पर सुनवाई के दौरान राज्य शासन ने शासकीय अधिवक्ता के पद को लोकसेवक का पद न मानते हुए आरक्षण नियम लागू करने से इनकार कर दिया था।
लिहाजा, नए सिरे से राज्य शासन के मनमाने नियम की संवैधानिक वैधता को कठघरे में रखते हुए याचिका दायर की गई है। हाई कोर्ट ने इस मामले में 19 मार्च, 2021 को नोटिस जारी किए थे। जवाब के लिए चार सप्ताह का समय दिया था। लेकिन राज्य शासन की ओर से जवाब पेश करने के स्थान पर हर बार मोहलत ली जाती रही है। इस प्रक्रिया में एक वर्ष गुजर गया। इससे पूर्व कोर्ट ने अंतिम अवसर दिया था, उसका भी कोई असर नहीं हुआ। इस रवैये को गंभीरता से लेकर विधि मंत्रालय व सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख विनोद कुमार से चर्चा भी की गई। उन्होंने महाधिवक्ता से निर्देश मिलने के आधार पर आगामी कार्रवाई के बारे में कहा।जबलपुर की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया jabalpur news पर क्लिक करें.