जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सेनानी हॉक फोर्स मुख्यालय भोपाल के उस आदेश को निरस्त कर दिया है जिसके तहत उन्होंने नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात पुलिस अधिकारियों एवं कर्मचारियों को राज्यपाल द्वारा स्वीकृत किए गए अलाउंस को रद्द करते हुए वसूली की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
कार्यालय सेनानी हॉक फोर्स हैडक्वाटर्स भोपाल के द्वारा एक आदेश जारी करके नक्सल प्रभावित इलाकों में जान का जोखिम लेकर काम कर रहे 1201 अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर वसूली की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। कृष्ण कुमार तिवारी एवं 42 अधिकारियों और आरक्षकों द्वारा इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। अधिवक्ता जय शुक्ला व सतीश पांडे ने याचिकाकर्ता के समर्थन में पक्ष रखा।
हाई कोर्ट को बताया गया कि नक्सल प्रभावित इलाकों में गंभीर वारदातों के लगातार बढ़ने के बाद सन 2001 में हॉक फोर्स का गठन किया गया था। इसमें शामिल होने वाले अधिकारियों आरक्षकों को राज्यपाल महोदय के आदेशानुसार मूल वेतन का 70% नक्सलाइट आपरेशन रिस्क अलाउंस स्वीकृत किया गया था। आदेश जारी होने के बाद से हाकफोर्स अधिकारियों-आरक्षकों का 70 फीसद नक्सलाइट आपरेशन रिस्क अलाउंस निरंतर प्रदान किया जा रहा था।
31 अगस्त, 2020 को कार्यालय सेनानी हाकफोर्स, मुख्यालय, भोपाल ने आदेश जारी करके 70 फीसद नक्सलाइट आपरेशन रिस्क अलाउंस न केवल निरस्त कर दिया बल्कि दिया गया अलाउंस वापस वसूलने के आदेश भी जारी कर दिए। इस मनमाने आदेश के तहत जुलाई, 2017 से जून 2018 के बीच 1201 हाकफोर्स अधिकारियों-आरक्षकों प्रदान किया गया 70 फीसद नक्सलाइट आपरेशन रिस्क अलाउंस वसूल करने का नोटिस जारी कर दिया गया।
इस मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाते हुए नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया था। सुनवाई पूरी होने के बाद वसूली आदेश को सर्वथा अनुचित पाते हुए निरस्त करने का अहम आदेश पारित कर दिया गया। बहस के दौरान दलील दी गई कि राज्यपाल के आदेश से दी गई 70 फीसद नक्सलाइट आपरेशन रिस्क अलाउंस की सुविधा इस तरह नहीं छीनी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के रफीक मसीह वाले न्यायदृष्टांत की रोशनी में भी वसूली आदेश अनुचित है। मध्यप्रदेश कर्मचारियों से संबंधित महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया MP karmchari news पर क्लिक करें.