कहते हैं राज्य सरकार या केन्द्र सरकार कि सार्वजनिक संपत्ति जनता के प्रयोग के लिए होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर आज भी बहुत से स्थानों पर रूढ़ि-वादी प्रथा चली जिसमे अनुसूचित जाति वर्ग के लोगो से छुआछूत की जाती है आज भी कुछ नदियों में ऐसे घाट होते हैं जिस पर इन्हें स्नान नहीं करने दिया जाता है लेकिन ऐसे वर्ग के व्यक्तियों को नदी, तालाब, कुआँ आदि में जाने से रोकना कितना गंभीर अपराध होता है जानिए।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(यक)(अ) की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग का सदस्य नहीं है वह इन वर्ग के लोगों को किसी क्षेत्र के सम्मिलित संपत्ति संसाधनों या सार्वजनिक कब्रिस्तान, श्मशान-भूमि का उपयोग करने से या किसी नदी, सरिता,झरना, कुआँ, तालाब, कुंड, नल या अन्य जलीय स्थान या कोई स्नान घाट में जाने से रोकेगा या किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न करेगा।
किसी सार्वजनिक परिवहन या कोई सड़क या मार्ग को प्रयोग करने से मना करेगा। ऐसा करने वाला व्यक्ति उपर्युक्त धारा के अंतर्गत अपराध होगा।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम,1989 की धारा 3(1) (यक) अ के अंतर्गत दण्ड़ का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार क्षेत्र जिला विशेष न्यायालय करता है। सजा - इस धारा के अपराध के लिए अधिकतम पाँच वर्ष की सजा एवं जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है।
पीड़ित व्यक्ति को शासन द्वारा राहत सहायता राशि;-
अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम,1995 नियम 12(4) के अनुसार इस अपराध के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति को राज्य शासन या संघ राज्यक्षेत्र प्रशासन द्वारा एक लाख रुपए की आर्थिक सहायता (संदाय) एवं सरकार का कर्त्तव्य हैं कि ऐसे व्यक्तियों को समानता के अधिकार उपलब्ध करवाना। यह राशि जिला कलेक्टर या जिला संयोजक अनुसूचित जाति एवं जनजाति कार्यालय द्वारा स्वीकृत होगी है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com