शक्तिरावत। कोरोना महामारी के दौरान अकेलापन भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में तनाव एंजाइटी और अवसाद के साथ मानसिक रोगों में बदल रहा है। अकेलापन इंसान को कमजार तो करता ही है, उसे गलत रास्तों पर भी ले जाता है। इसलिये आज लाइफ मैनेजमेंट के इस अध्याय में बात हिकिकोमोरी यानि अकेलेपन की समस्या और हक्कुनामटाटा यानि चिंता मत कीजिये। इसमें एक तीसरी बात है, वह है मिशन। तो आईये करते हैं, शुरूआत।
1- हिकिकोमोरी क्या होता है-
पिछली यानि 20 वीं सदी की शुरूआत में जापान में अकेलेपन की समस्या उभरी थी, जिसे वहां की स्थानीय भाषा में हिकिकोमोरी कहा गया। साल बीतने के साथ यह खत्म हो गई। लेकिन कोरोना महामारी के बीच इक्कीसवीं सदी में जापान के समाज में यह समस्या फिर विकराल रूप धारण कर रही है। मनोवैज्ञानिकों को मुताबिक इस समय जापान में 8 प्रतिशत यानि 1 करोड़ लोग हिकिकोमोरी के शिकार है। इसके शिकार समाज, दोस्तों और परिवार से कटकर महीनों तक अलग रहते हैं, वे या तो आत्महत्या के बारे में सोचते हैं, या फिर किसी पर हमला करने के बारे में। लेकिन यह अकेले जापान की समस्या नहीं है, भारत समेत पूरी दुनिया के समाज इससे जूझ रहे हैं, हमारे देश में यह आकंडा और भी बड़ा है। लगातार निराशा का माहौल लोगों को अकेलेपन की तरफ धकेल रहा है। इसलिये इस मामले में बहुत सर्तक रहने की जरूरत है, इस समय बहुत जरूरी है, कि नियमित दिनचर्या और व्यायाम के साथ ही समाज और परिवार से जुउ़े रहें।
2- कोरोना से उपजा अकेलापन दूर करने के लिए क्या करें
दरअसल अकेलेपन की समस्या उन लोगों के जीवन में ज्यादा पैदा होती है, जिनके पास जीवन में कोई मिशन नहीं है। मिशन यानि उदेश्य। आप अपने आसपास के उन लोगों को देखें जो किसी काम में जुटे वे कभी बोर नहीं होते, जिनके पास उद्देश्य है, वे कभी बोर और अकेले नहीं होते, क्योंकि उनके पास हमेशा कुछ करते रहने का कारण मौजूद होता है। इसलिये अकेलेपन से बचने का सरल तरीका है, किसी ना किसी मिशन से जुड़ जाना। वह या तो आपका हो या फिर कोई दूसरा बड़ा मिशन हो। वैज्ञानिक भी मानते हैं, कि खुद के बारे में निरर्थक सोचने से अकेलपन की समस्या बढ़ती है, जबकि जिनके पास मिशन होता है, ऐसे लोगों को कभी भी वोरियत या कुंठा जैसी समस्याएं नहीं होती।
3- हक्कुनामटाटा क्या होता है
यह स्वाहिली भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है, चिंता मत कीजिये। यानि डोंट वरी। आप जितने चिंता से घिरेंगे, उतना तनाव आपको अपनी पकड़ में लेता जाएगा। जितना तनाव बढ़ेगा, उतनी अकेले रहने की इच्छा बढ़ेगी। इसलिये तनाव या चिंता के बारे में नहीं बल्कि समाधानों के बारे में सोचिये। महामारी ने आपके जीवन के सिर्फ 2-3 साल ही खराब किए हैं, पूरा जीवन नहीं। माना कि इस माहौल में कई बड़े नुकसान भी हुए। लेकिन जिंदगी की सारी चिंता ईश्वर पर छोडक़र जीवन में आगे बढऩे में ही समझदारी है। -लेखक मोटीवेशनल एंव लाइफ मैनेजमेंट स्पीकर हैं।