शक्ति रावत। स्कूलों में परीक्षाएं यानी पूरे देश में इमंरजेंसी का समय। यह तय करना मुश्किल हो जाता है, कि एग्जाम की वजह से बच्चे ज्यादा तनाव में हैं या उनके पेरेंट्स। हमने ऐसी स्थिति बना ली है कि इस परीक्षा के डर ने अब फोबिया का रूप धारण कर लिया है। जिसकी कीमत हर साल हमारे मासूम बच्चे चुका रहे हैं। यह फोबिया इस कदर खतरनाक है कि बच्चे आत्महत्या जैसे कदम उठाने को भी मजबूर हो जाते हैं। तब सवाल उठता है कि क्या परीक्षा जिंदगी से ज्यादा कीमती है? खैर इस सवाल का जबाव तो समाज और सरकारें ढूंढे तो ज्यादा ठीक होगा। हम तो यहां बात करेंगे कि बच्चे इस फोबिया से कैसे खुद को बचा सकते हैं। तो आईये बात करते हैं, उन टिप्स की जिससे आप परीक्षा के डर पर काबू पा सकते हैं।
1- सबसे पहले पेरेंट्स शांत रहना सीखें
किसी कवि ने लिखा की परीक्षा के नाम पर सोना भी पिघलकर कांपने लगता है, फिर हम बच्चों के ऊपर पडऩे वाले प्रेशर का आसानी से अनुमान लगा सकते हैं। मैं सलाह दूंगा की सबसे पहले शांत रहना सीखें। परीक्षा जिंदगी का हिस्सा है, पूरी जिंदगी नहीं, और शांत दिमाग से ही जीवन की हर उलझन का समाधान निकलता है। आपको डर या भरोसे में से किसी एक को चुनना है। इसलिये हमेशा दांव भरोसे पर लगाइए। तो पहला स्टेप है कि चुनौती परीक्षा की हो या फिर जिंदगी की कोई और चुनौती सबसे पहले खुद को शांत रखना सीखिए। आपको आगे की राह दिखने लगेगीे। जब तनाव हावी हो गहरी सांस लें, 10 से 20 बार। दिन में चार से पांच बार या ज्यादा भी।
2- स्टूडेंट्स पढ़ाई से पहले पढ़ाई का प्लान तैयार करें
दुनिया का कोई सब्जेक्ट ऐसा नहीं है, जिसे आप समझना चाहें और समझ ना सकें। हम अकसर घबरा जाते हैं, ऐसे में जो याद होता है, वह भी भूल जाता है। इसलिये रणनीति बनाकर पढ़ाई करें। लंबी सिटिंग ना करें। हर एक से डेढ़ घंटे में ब्रेक जरूर लें ताकि आपने जो पढ़ा उसे याद रखने का दिगाम को मौका मिले। जो याद करने में कठिनाई हो रही है, उसे लिखकर पढ़ें हमेशा याद रहेगा।
3- टॉप पर पहुंचने के लिए ब्रेक जरूरी है
परीक्षा का नाम आते ही 24 घंटे पढ़ाई का भूत सवार हो जाता है। हर चीज में टोका टाकी शुरू हो जाती है, यहां पैरेंट भी समझें बच्चों को पर्याप्त ब्रेक की जरूरत है। ब्रेक के दौरान परीक्षा के टेंशन में अकेले ना हो जाएं। बल्कि परिवार और दोस्तों से बातचीत करते रहें। साथ ही संगीत, कोई हल्काफुल्का गैम या थोड़ा बहुत व्यायाम या एक्सरसाइज करें। हां इस दौरान मोबाइल से जरूर दूर रहें क्योंकि वह आपके दिमाग को और थकाएगा।
4- मन का हो तो अच्छा और अगर मन का ना हो तो ज्यादा अच्छा
सिर्फ पढ़ाई ही नहीं जिंदगी के हर क्षेत्र ऐसा होता है, जबकि कई बार पूरी मेहनत करने के बाद भी आपको अपने मन के मुताबिक परिणाम नहीं मिल पाता है। तो क्या वे सब लोग निराश होकर जीना या जीवन में आगे बढऩा छोड़ देते हैं। वेशक नहीं। क्योंकि जिंदगी आपको साबित करने के लिए बार-बार मौका देती है। इसलिये निराश होने की जगह इस मूलमंत्र को अपनाएं कि मन का हो तो अच्छा और अगर मन का ना हो तो ज्यादा अच्छा। क्योंकि तब वह ईश्वर की मर्जी का होता है। आप अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी से मेहनत कीजिये बस। इतना काफी है। - लेखक मोटीवेशनल एंव लाइफ मैनेजमेंट स्पीकर हैं। उच्च शिक्षा, सरकारी और प्राइवेट नौकरी एवं करियर से जुड़ी खबरों और अपडेट के लिए कृपया MP Career News पर क्लिक करें.